‘रोशमोलयो चीने’ के हथकरघा बुनकर- किन्नौर का भविष्य के रचनाकार
आकर्षक और आरामदायक, किन्नौरी ऊनी कपड़े कुशल हाथों से बड़ी मेहनत से बुने जाते हैं और प्रत्येक वस्तु को बनाने में समय और मेहनत लगती है। यह कहानी हिमाचल प्रदेश के हिमालयी राज्य के किन्नौर जिले में स्थित कल्पा गांव के एक ग्राम-स्तरीय स्वयं सहायता समूहों के संगठन, रोशमोल्यो चीने की महिलाओं के जीवन की एक झलक देती है। यह हथकरघा बुनाई की सदियों पुरानी कला को संजोने के साथ-साथ इन महिलाओं द्वारा शुरू की गई उद्यमशीलता यात्रा के बारे में बताता है।
कहानीकर्ता : प्रमिति नेगी
हिमल प्रकृति फेलो
रिकांग पिओ, जिला किन्नौर, हिमाचल प्रदेश
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कल्पा, किन्नौर के जिला मुख्यालय रिकांग पियो से 5 किमी से भी कम दूरी पर स्थित है। यह सुरम्य गांव हिमालचल प्रदेश में किन्नौर आने वाले पर्यटकों के बीच एक आकर्षण का केंद्र है।
कल्पा गाँव 6 स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के एक ग्राम संगठन ‘रोशमोलयोचीने’ की मेहनती महिलाओं का भी घर है। ‘चीने’ कल्पा का प्राचीन नाम है और’रोशमोल्यो’ एक पुरातन शब्द है जिसका प्रयोग अक्सर लोकगीतों और कहानियों में कल्पा का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
रोशमोलयो चीने में प्रत्येक एसएचजी में 5 से 6 सदस्य हैं जो विभिन्न प्रकार के हस्तनिर्मित उत्पादों जैसे कि अचार, खुमानी तेल आदि और किन्नौरी ऊनी कपड़ों केनिर्माण और बिक्री में लगे हुए हैं।2023 में उनकी आखिरी बैठक में तीन नए सदस्यों का स्वागत किया गया, जिन्होंने अवसरों और
सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में रोशमोलयो चीने की निपुणता का हवाला देते हुए अपने पूर्ववर्ती समूह को छोड़ दिया था।
इन समूहों में अचार बनाना, टेकमा (किन्नौरी टोपी पर पहने जाने वाली सजावट) आदि जैसे काम मौसमी हैं। बुनाई पूरे वर्ष जारी रहती है और अधिकांश सदस्य किन्नौरी ऊनी कपड़ों, जैसे छंलि और लिंगचे (शॉल की विभिन्न किस्में),गोलबंद (मफलर) आदि ऊनी कपड़े बनाती हैं। बुनाई में पारंपरिक हथकरघा जिसे खड्डी कहा जाता है का उपयोग होता है।
रोशमोलयो चीने के सदस्य मुख्य रूप से कल्पा में ‘रंग चंपो’ क्षेत्र के आसपास रहते हैं। महिलाओं के लिए एक सामान्य बैठक स्थल सरकारी प्राथमिक विद्यालय के पास है और चर्चाएँ बाहर पेड़ों की छाया के नीचे होती हैं। गर्मियों में बैठकें अधिक होती हैं और सर्दियों में बर्फबारी और ठण्ड के चलते मिलना-जुलना रुक जाती हैं।
एक ज़माना था जब भेड़ पालन इस क्षेत्र की आजीविका का मुख्य आधार था, जिसकी जगह आज सेब की खेती ने ले लिया है। कल्पा में कुछ ही चरवाहे बचे हैं और रोशमोलयो चीने की महिलाएं अपने ऊनी कच्चे माल के लिए स्थानीय बाजार पर निर्भर हैं।
रोशमोलयो चीने के बुनकरों ने अपने घरों में हथकरघा स्थापित किया है और ज्यादातर स्थानीय ग्राहकों द्वारा पहले से ऑर्डर किए गए सामानों पर व्यक्तिगत रूप से काम करती हैं। औसतन, एक शॉल लगभग 25,000 रुपये में बिकती है और डिज़ाइन के आधार पर कीमत बढ़ जाती है। एक महिला महीने में एक या दो वस्तु बनाती है।
रोशमोलयो चीने की अध्यक्ष लक्ष्मी नेगी हैं और उन्हें अपने द्वारा बुनी गई वस्तुओं पर बहुत गर्व है। लक्ष्मी अपने समूह की महिलाओं की अर्जियां भरने में मदद करती हैं और नई सरकारी योजनाओं और सब्सिडी के बारे में खूब जानकारी रखती हैं। लक्ष्मी के पति और बेटा रोजगार के लिए अस्थायी रूप से शहर चले गए हैं और वह अपनी बेटी के साथ गांव में रहती हैं। लक्ष्मी ने अपने परिवार की अतिरिक्त आय के साधन कमाने के उदेश्य में कुछ साल पहले ही बुनाई सीखी थी।
जटिल डिज़ाइन जिनके लिए अत्यधिक विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है और जो श्रमसाध्य होते हैं, विभिन्न परिधानों पर चित्रित किए जाते हैं। भेड़ के ऊन का उपयोग बिना रंगे प्राकृतिक अवस्था में किया जाता है। पैटर्न बनाने के लिए चटकीले रंग- जैसे लाल, नीला, हरा, नारंगी और सफेद आदि का उपयोग किया जाता है। यह पूर्व से रंगे हुए कैशमिलोन ऊन (सिंथेटिक ऊन) से बनाया जाता है जिन्हें बाज़ार से खरीदा जाता है।
डिज़ाइन किन्नौर की स्थानीय मान्यताओं और रीति-रिवाजों से प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए, बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और स्थानीय मान्यताएं (जीववाद, प्रकृतिवाद और पूर्वज पूजा) किन्नौर के क्षेत्रों में सह-अस्तित्व में हैं। धार्मिक रूपांकनों जैसे छोरतेन (बौद्ध स्तूप) औरहिंदू स्वस्तिक का एक ही पैटर्न में मिश्रित कर बुना जाता है।
रंजना नेगी कुशल बुनकरों की एक लंबी कतार वाले परिवार से आती हैं। जब वह छोटी लड़की थी तब उसने बुनाई सीखी। शादी के बाद उनकी सास और ससुर ने उन्हें अपने कौशल को निखारने में मदद की।
बुढ़ापे और खराब स्वास्थ्य के कारण रंजना के ससुराल वाले अब बुनाई नहीं कर पाते है। जब से संगठन की स्थापना 2019 में हुई, तब से रंजना रोशमोलयोचीने के साथ जुड़ी है।
मिंता देवी उन तीन महिलाओं में से एक हैं जो हाल ही में रोशमोलयो चीने में शामिल हुई है। उन्होंने शादी के बाद बुनाई अपने पड़ोसी से सीखी है। वह पिछले 15 वर्षों से बुनाई कर रही हैं और बाद में उन्होंने अपने पति को भी बुनाई सिखाई। मिंता देवी के पति पेशे से मिस्त्री हैं और जब उन्हें बढ़ईगीरी का काम नहीं मिलता तो वे बुनाई करते हैं।
पति-पत्नी की जोड़ी ने अपने काम को सोचे-समझे तरीके से बांट लिया है। मिंता देवी विभिन्न रंगों का उपयोग करके जटिल रूपांकनों और डिज़ाइनों की बुनाई करती हैं जबकि उनके पति एक ही रंग और बिना डिज़ाइन वाले दोडू (रैप-अराउंड या धोती) बुनते हैं।
मिंता देवी ने घर के पंठांग में अपनी खड्डी स्थापित की है। किन्नौर के लोगों के लिए पंठांग घर में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यह वह जगह है जहां बुखारी लगाईजाती है। परिवार के सदस्य यहां खाना बनाते हैं, भोजन करते हैं, बैठते हैं और आराम करते हैं। साथ-साथ महत्वपूर्ण मेहमानों के मेज़बानी भी यहां करते है।
संगठन की महिलाएं ग्रामीण व्यापार मेलों और उत्सवों के दौरान अपनी दुकान लगा रोशमोलयो चीने के बैनर तले अपने उत्पाद सामूहिक रूप से बेचती हैं। इस ग्राम संगठन को अक्सर किन्नौर के बाहर आयोजित व्यापार मेलों और त्योहारों में भी आमंत्रित किया जाता है। हालांकि सदस्यों का कहना है कि स्थानीय बाजार से परे किन्नौरी ऊनी कपड़ों की मांग सीमित है।
आज के बाज़ार फ़ैक्ट्रियों में बड़े पैमाने पर उत्पादित सामानों से भरे हुए हैं। किन्नौर के कारीगर ऊनी कपड़े सीमित मात्रा में बनाए जाते हैं और इन्हें बुनने में काफी समय लगता है। किन्नौर में बुनाई एक ऐसी कला है जो धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। यह कौशल मौखिक रूप से सिखाया जाता था और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पारित किया जाता था। परंपरागत रूप से यह कौशल कारीगर समुदाय तक ही सीमित था जिन्हें निम्न स्तर का माना जाता था। आज कम ही युवा बुनाई का हुनर सीख रहे हैं। है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प है कि महिला स्वयं सहायता समूह इसके पुनरुद्धार में किस प्रकार भूमिका निभा रहे हैं। सरकार द्वारा संचालित बुनाई शिक्षण केंद्र और योजनाएं सभी सामाजिक पृष्ठभूमि की महिलाओं को बुनाई के कौशल को सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।
रोशमोलयो चीने जैसे स्वयं सहायता समूहों के लिए बिक्री के माध्यम सीमित हैं। यह तो समय ही बताएगा की महिलाएं बिक्री के अपने रास्ते का विस्तार किस प्रकार से कर सकती हैं और कल्पा में पहुँचने वाले पर्यटकों को कैसे लक्षित करती हैं। अपने तैयार उत्पाद और कच्चे माल दोनों की बाजार दरें निर्धारित करने के लिए अपनी सामूहिक ताकत का उपयोग करना इनके लिए महत्त्वपूर्ण होगा। आज के दिन गांव के पुरुष और महिलाएं दोनों सेब की खेती में मुख्यतः लगे हुए हैं। रोशमोलयो चीने का यह समुदाय-आधारित प्रयास महिलाओं के लिए रोजगार के साधनों में विविधता लाने के लिए और किन्नौर में बुनाई की कला को बचाए रखने के लिए एक सराहनीय कदम है।