फ़ोटोक्सर की लाल और नील झीलों का अद्वितीय सौंदर्य: एक यादगार ट्रेक
ताशी डोल्मा अपने शांत गाँव फोटोक्सार में हो रहे परिवर्तन के बीच उसे एक प्रकृति-आधारित पर्यटन के लिए छुपा हुआ रत्न कैसे बना पाएगी पर विचार करती है। फोटोक्सार में सड़क पहुंचने से बदलते ट्रेकिंग पैटर्न्स के चुनौतियों का सामना करते हुए, ताशी एक इकोटूरिज़म कम्पनी से मिलकर अपना सतत पर्यटन मॉडल की शुरुआत करती है। ताशी अपने साथ फ्रांस की एकल ट्रेकर चारलाइन को अपने गांव के पास स्थित लाल और नीले झील का भ्रमण कराती है। लादाख के परिदृश्य की कठिनाइयों के बीच उनके बीच गहरी दोस्ती का निर्माण होता है। चारलीन फोटोक्सार के प्राकृतिक सौंदर्य से परिचत हुई और साथ ही ताशी को अपने गांव में प्रकृति-आधारित पर्यटन की संभावनाओं के रास्ते खुलते नज़र आए।
कहानीकार : ताशी डोलमा,
हिमल प्रकृति फ़ेलो
फ़ोतोक्सर, लेह, लद्दाख
Read this story in English
यह बात मुझे हमेशा परेशान करती रही है कि मेरे शांत गांव फ़ोटोक्सर को पर्यटन की दृष्टि से कितना कम आंका गया है। फिर भी, फ़ोटोकसर कब से ‘द ग्रेट क्रॉसिंग ऑफ़ ज़ांस्कर’ ट्रेक की शुरुआती पड़ाव के रूप में अपनी पहचान रखता आया है। कई विदेशी ट्रेकर बड़े समूहों में आते रहे हैं और चूँकि मेरे गाँव में केवल कुछ ही होमस्टे थे, उनके लिए पर्याप्त आवास नहीं था। इसलिए वे गांव में रहने के बजाय आसपास ही डेरा डाल देते हैं।
2019 में सरकार ने वानला से पदुम तक सड़क का निर्माण किया जो अब फ़ोटोक्सर से होकर जाती है। तब से किसी भी ट्रेकर को ग्रेट क्रॉसिंग पर ट्रैकिंग करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। अब फ़ोटोक्सर में एक नए तरह के पर्यटक देखने को मिल रहे हैं जो अपनी निजी कारों में परिवार के साथ घूमने पहुँच रहे हैं। ये परिवार समूह होमस्टे में रहने के इच्छुक तो हैं, लेकिन बहुत कम पर्यटक फ़ोटोक्सर में रुकने के इच्छुक हैं क्योंकि अब वे एक ही दिन में पदुम पहुंच सकते हैं।
अपने गांव और अपने लोगों की मदद करने के लिए मैं हमेशा उत्सुख रही हूँ और ऐसे तरीकों की तलाश में थी। फिर मेरी मुलाकात स्टीफ़न और उनके कम्पनी ‘हिमालयन इकोटूरिज्म’ से हुई। उन्हें और उनकी टीम को हिमाचल प्रदेश में इकोटूरिज्म के क्षेत्र में काम करने का लम्बा अनुभव था। हमने साथ मिलकर चर्चा की कि हम फ़ोटोक्सर में प्रकृति-आधारित पर्यटन का एक मंच कैसे बना सकते हैं जिससे यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बना सके। हमने फ़ोटोक्सर में और उसके आसपास कुछ गतिविधियाँ विकसित करने की संभावना पर विचार किया, जैसे पर्यटकों के लिए सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रदर्शन, लद्दाखी खाना पकाने की कार्यशाला चलाना और उनके बीच विशेष आध्यात्मिक शिक्षकों को आमंत्रित करना। हमने गांव से ही नए ट्रैकिंग मार्गों की पहचान करने के बारे में बात की जो जिम्मेदार पर्यटकों को आकर्षित करेंगे और ग्रामीणों को पर्यटन के माध्यम से आजीविका कमाने में मदद करेंगे।
मुझे स्टीफ़न की एक टिप्पणी याद है जो मुझे वास्तव में पसंद आई:
“यदि पर्यटन आय का एक अच्छा स्रोत हो सकता है, तो यह गाँव के सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुँचा सकता है।”
इस लिए ग्रामीणों के बीच एकता बनाए रखने के लिए मैंने अपने मित्र त्सेरिंग और फ़ोटोक्सर के युवा क्लब के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर ‘फ़ोटोक्सर पर्यटन विकास समिति’ की स्थापना की।
इस उम्मीद भरे कदम के कुछ ही दिनों बाद मुझे स्टीफ़न का फोन आया कि उनके पास फ्रांस से आने वाली एक ट्रेकर है जिसका नाम चार्लीन है, जो फ़ोटोक्सर के आसपास ट्रेक पर जाने की इच्छुक है। मैं तुरंत इस ट्रेक पर जाने के लिए तैयार हो गई। चूंकि लाल झील ट्रेकरों के बीच अब तक एक अज्ञात रहा गंतव्य है, हमने फैसला किया कि शुरूआत करने के लिए यह झील ट्रैकिंग के लिए एक अच्छा स्थान हो सकता है, और फिर वहां से नीली झील तक ट्रैकिंग की जा सकती है।
हम स्टीफ़न और चार्लीन से चुलम होमस्टे में मिले जो मेरे पड़ोस में ही है। चार्लीन अकेली ट्रेकर थी और उसने सहमते हुए अपने चेहरे पर आत्मविश्वास और मिठास के मिश्रण के साथ अपना परिचय दिया। मैं भी ट्रेक को लेकर एक ही समय में उत्साहित और घबरायी हई थी, लेकिन चार्लीन से मिलने से मैं अंदर से शांत हो गई। उस रात हमने साथ में खाना बनाया और मैंने चार्लीन को मोमो बनाना सिखाया।
ट्रेक के पहले दिन की सुबह मैं चार्लीन से मिलने उसके होमस्टे में गई। वह ट्रेक पर जाने की अपनी तैयारी कर रही थी और वह बहुत उत्साहित लग रही थी, मानो उसे खुद को ऊर्जाओं से भरने की जरूरत थी। वह मेरी ओर देखकर मुस्कुराई और वह इस बात को लेकर अनिश्चित लग रही थी कि क्या “जूले” कहकर मेरे से मिले या फिर कुछ अधिक गर्मजोशी से मेरा स्वागत करे। थिनले (मेरे चाचा) जो ट्रेक लीडर थे, खच्चरों पर सामान लादने वाले साथी के साथ बाहर तैयारी कर रहे थे। हमने अपना ट्रेक होमस्टे से शुरू किया और गाँव, खाली खेतों और उसके इर्द-गिर्द जीवन को पीछे छोड़ने में हमें लगभग आधा घंटा लग गया।
अब हम हिमालय की विशाल वादियों और प्रकृति के बीच में पहुँच चके थे, जो मेरी नजर में एकमात्र प्रकार की जगह है। यहां सूक्ष्म वनस्पतियों से ढकी हल्की ढलानों के बीच एक नदी बह रही थी जिसके किनारे पर बंजर प्रतीत होने वाले खड़ी चट्टान खड़े थे और उनके शीर्ष पर ग्लेशियर बसा हुआ था। मैंने चार्लीन से पूछा कि क्या उसके देश में ऐसे पहाड़ हैं? उसने हाँ कहा, लेकिन वहाँ घने जंगलों से ढके होने के कारण बहुत अलग दिखने वाले पहाड़ हैं। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं ऐसे हरे-भरे पहाड़ों में रहना पसंद करूंगा, लेकिन चार्लीन को लग रहा था कि उन्हें लद्दाख के पहाड़ पसंद आ रहे हैं।
मुझे यहां रहने पर अचानक गर्व महसूस हुआ और मुझे अपने क्षेत्र के सबसे ऊंचे पहाड़ों के बीच छिपे लाल झील और नीली झील के विशेष स्थान पर जाने की खुशी हुई। उसके बाद हम जिन परिदृश्यों के बीच से गुजर रहे थे, उनके लिए हम समान स्तर की प्रशंसा साझा करने लगे।
पुथांग के एक बड़ा घास के मैदान में पहुँचने पर हमने कुछ नारंगी-भूरे रंग के मर्मोट को घास खाते हुए देखा। इस मैदान में हमारे चरवाहे अपने जानवरों के साथ आया करते हैं। मैंने चार्लीन को समझाया कि मर्मोट बहुत मददगार जानवर माने जाते हैं क्योंकि वे तेंदुए या भेड़िये के खतरे की चेतावनी देने के लिए आवाज़ निकालकर चरवाहों को सचेत करते हैं और वे अपने जानवरों को बचा लेते हैं। हमने पु स्पैंग चेन मो की ओर चलना जारी रखा और हमें बर्फ के ठंडे पानी वाली नदी को तीन बार पार करना पड़ा जिसने निश्चित रूप से चार्लीन को थोड़ा परेशान किया। लेकिन धूप वाला दिन होने के कारण यह सहनीय लग रहा था।
दोपहर के भोजन के समय तक हम कैम्पिंग स्थल पर पहुंच गए और सबको राहत महसूस हुई। मैंने चार्लीन और अन्य लोगों के साथ मिलकर टेंट लगाया और दोपहर का भोजन तैयार किया। खाने के बाद हम टहलने गए और एडलवाइस (ऊँचाइयों पर उगने वाला एक फूल) और जंगली गुलाब को देख चार्लीन की आँखें उत्साह से चमक उठीं। वह उन औषधीय पौधों से मंत्रमुग्ध थी जिन्हें इकट्ठा करने के लिए हमारे गांव के आमची (पारंपरिक डॉक्टर) आमतौर पर यहां आता है। ये औषधीय पौधे कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को ठीक होने में मदद करते हैं। उन्हें यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि ऐसी प्रथाएँ यहाँ अभी भी जीवित हैं, क्योंकि उनके देश में बहुत कम लोगों के बीच औषधीय पौधों के बारे में जानकारी बची है।
घूमते-घामते हम उस प्राकृतिक झरने के पास पहुँचे जहाँ से हम पीने, खाना पकाने और कपड़े धोने के लिए पानी लाए। सूरज की गर्मी ने अब ठंडी हवाओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था और हमें ईंधन की लकड़ी की तलाश करने के लिए प्रेरित किया। पर हम केवल कुछ सूखा गाय का गोबर ही एकत्र कर सके। चार्लीन ने जब बिना लकड़ी के आग के शाम गुजारने पर चिन्ता व्यक्त की तो मैंने उसे बताया कि गांव से चरवाहे सुबह अपने मवेशियों को चराने इस क्षेत्र में आते हैं और शाम को वे जो भी जलाऊ लकड़ी इकट्ठा कर उसके साथ घर लौट आते हैं। जैसे-जैसे शाम होती गई, यह स्पष्ट हो गया कि अकेले गाय का गोबर से गर्मी पर्याप्त नहीं होगी। हमें फिर से सूखी झाड़ियों और छोटी टहनियों की तलाश पर निकल पड़े।
तारों से जगमगाते आकाश के नीचे हम सभी आग तापते हुए स्वादिष्ट रात्रिभोज के लिए बैठे और बातचीत में तल्लीन थे। बातों से निकला कि चार्लीन और मेरी परवरिश कितनी अलग रही है और हमारी पृष्ठभूमि के बीच कितने अंतर थे। फिर यह ऐहसास हुआ कि कैसे ये पहाड़ हमारी परिस्थितियों में असमानता के बावजूद हमें करीब ले आए हैं।
मैं अगली सुबह जल्दी उठी और कड़ाके की ठंड महसूस की क्योंकि गर्मी का मौसम समाप्त हो रहा था और फसल का मौसम बीत चुका था। हमने थिनले के साथ नाश्ता बनाया और दोपहर का भोजन किचन टेंट में पैक किया। आज लाल और नीली झील तक एक लंबे दिन का ट्रेक होने वाला था।
हमने अपना सामान कैंपसाइट पर छोड़कर 8 बजे ट्रेक शुरू किया क्योंकि हमें दूसरी रात भी यहीं पर बितानी थी। मैंने चार्लीन से कहा कि हम एक घंटे के भीतर लाल झील पहुँच जायेंगे और वह बहुत उत्साहित थी और उसने मेरा हाथ थाम लिया। मुझे अच्छा महसूस हुआ। अब से हम दोस्त थे- दो युवा महिलाओं की एक टीम। वहाँ कोई ग्राहक और स्थानीय ट्रैकिंग स्टाफ नहीं था क्योंकि हम दो आत्माएँ थीं जो अपने छोटे से स्वर्ग की ओर जा रही थीं। एक छोटा सा दर्रा पार करने के कुछ ही देर बाद हमारे सामने लाल झील दिखाई दी। इसमें कोई संदेह नहीं था, लाल झील… लाल है, मिट्टी के बर्तनों के रंग की तरह।
हम झील से कुछ दूरी पर बैठे जहाँ का दृश्य एकदम जादुई था। लाल झील लाल पहाड़ों और ग्लेशियरों से घिरी हुई है। चार्लीन ने मुझे बताया कि उसने इतनी आकर्षक चीज़ पहले कभी नहीं देखी थी। बैठकर दृश्यों को निहारते समय हम दोनों के सिर एक-दूसरे पर टिके रहे थे।
थिनले ने हमें पैदल यात्रा फिर से शुरू करने के लिए कहा क्योंकि नीली झील तक पहुंचने के लिए हमें अभी भी एक लंबा दिन चलना था और हमें बेसकैंप वापस लौटना था। हमने फिर से चलना शुरू किया लेकिन इस बार यह अधिक चुनौतीपूर्ण था। चार्लीन का जीपीएस 5100 मीटर की ऊंचाई दिखा रहा था और थिनले एक बहुत ही खड़ी और चट्टानी ढलान के माध्यम से आगे का रास्ता बता रहे थे।
अब रास्ते में कोई वनस्पति नहीं थी और हमें बर्फ के टुकड़ों पर चलना पड़ रहा था। चार्लीन हाँफ रही थी और मैं महसूस कर सकती थी कि वह प्रत्येक कदम के लिए कितना संघर्ष कर रही थी। वहां कोई पगडंडी नहीं थी और चढ़ाई इतनी खड़ी थी कि कोई वहां से गिरकर मर सकता था। मैं भी चढ़ाई चढ़ते समय कमजोर न दिखने के लिए खुद पर जोर दे रही थी। मैं चार्लीन को देखकर मुस्कुराई। मुझे लगा कि उसका हौसला बढ़ाना मेरी भूमिका थी। किसी की मदद करने से आप अपना दर्द भूल जाते हैं और अपने दोस्त का सहयोग करने के लिए अपने अंदर अतिरिक्त ऊर्जा ढूंड लेते हैं।
मंथांग ला (दर्रा) तक पहुंचने में लगभग दो घंटे लग गए। दर्रे पर पहुँचने पर मैंने चार्लीन को फिर से जीवंत पाया। मंथांग ला ट्रेक का उच्चतम बिंदु 5570 मीटर है। इसलिए जब हम शीर्ष पर पहुंचे तो यह एक तरह की उपलब्धि थी क्योंकि हम अपने लक्ष्य तक पहुंच गए थे। जब हमने अपने चारों ओर नज़र डाली तो क्षितिज पर अनगिनत चोटियाँ और ग्लेशियरों की एक श्रृंखला लहरों की तरह दिख रहे थे और उनमें से कुछ सैकड़ों किलोमीटर दूर लग रहे थे।
यदि लाल झील जादुई थी, तो मंथांग ला एक चमत्कार था।
पहाड़ ऐसे ही होते हैं- आपको उनके लायक होने की जरूरत है, आपको कष्ट सहने की जरूरत है, आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अपने दिमाग और शरीर को संरेखित करने की जरूरत है। और जब आप अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं तो आप एक व्यक्ति के रूप में मजबूत हो जाते हैं। आप अपने दैनिक जीवन के बारे में भूल जाते हैं और यह महसूस करने लगते हैं कि वास्तव में जीवन क्या मायने रखता है: अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए खुद को विकसित करना।
दर्रे के दूसरी ओर हमारे पैरों के नीचे एक विशाल ग्लेशियर पड़ा हुआ था। हम चट्टानों के बीच रास्ता खोजते हुए और उचित अनुष्ठान करके अपने प्रार्थना झंडे लगाने के लिए दर्रे के किनारे थोड़ा आगे बढ़े। नीली झील ग्लेशियर के ठीक नीचे थी और दर्रे से लगभग 3 किलोमीटर आगे थी। हम इसे दर्रे से देख सकते थे।
चार्लीन ने मुझसे कहा कि हम ट्रेक यहीं समाप्त कर सकते हैं और वापस जा सकते हैं, लेकिन थिनले पहले ही ग्लेशियर पर चलते हुए नीचे जा रहे थे। हमें भी उनके पीछे निकल पड़े। उतरना आसान था लेकिन मैंने देखा कि चार्लीन बर्फ पर चलने से थोड़ा डर रही थी, खासकर जब हमें छोटी क्रेवास या दरारें पार करनी होती थीं। झील तक पहुंचने से पहले हमने चलना बंद कर दिया क्योंकि बर्फ में बड़े क्रेवास थे जिसके कारण ग्लेशियर खतरनाक होता जा रहा था। हम वहां पहुंच कर संतुष्ट थे और हमने वापस जाने का फैसला लिया।
हम फिर चढ़ाई चढ़कर मंथांग ला वापस पहुँचे। चार्लीन को अब तेज़ सिरदर्द की शिकायत थी। मैं भी ऐसा ही महसूस कर रही थी, लेकिन मुझे लगा कि उतना बुरा नहीं था। हम आसानी से लाल झील तक उतरे और बेसकैंप की ओर बढ़ते रहे। हमें तीन बार नदी पार करनी पड़ी और चूंकि सूरज डूब चुका था, खुद को गर्म करना बहुत मुश्किल था। आखिरी बार नदी पार करने पर चार्लीन ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। उसने पूछा कि क्या नदी पार करने से बचने का कोई रास्ता है? जब मैंने उससे कहा कि यह संभव नहीं है तो वह रोने लगी। मैंने उसे अपनी बाहों में ले लिया और हम एक साथ नदी पार कर गए। वह बहुत आभारी थी और मुझे लगा कि हमारी दोस्ती में एक और गहराई आ गई।
पहाड़ों ने हमें कुछ और सिखाया: जीवन के कठिन क्षणों दो लोगों के बीच का प्यार उभारने में मदद कर सकता है।
हम जल्द ही बेसकैंप में वापस आ गए। हमने रात में खेल खेले और थिनले और खच्चर वाले ने हमारे लिए खाना बना दिया। हमने अपनी दूसरी रात इस कैंपसाइट पर बिताई। मुझे चार्लीन के साथ अपना कंबल साझा करना पड़ा क्योंकि इतने थका देने वाले दिन के बाद उसे बहुत ठंड लग रही थी।
तीसरे दिन को हमने कांगड़ी मर्मर जाने और देखने का फैसला किया। वहां स्थित ग्लेशियर से फ़ोटोक्सर का पानी बहकर आता है। हमारे कैंपसाइट के आसपास बहुत सारे याक थे। वहाँ 3 ग्रामीण थे जो सुबह-सुबह अपने जानवरों को चराने आये थे। जिज्ञासावश एक विशाल याक चार्लीन के टेंट के पास आया तो वह वहां से तेजी से भाग गई। चार्लीन इस बात से अनजान थी कि ये जानवर आक्रामक नहीं हैं। याक के साथ कुछ खूबसूरत पश्मीना बकरियां भी वहां घूम रही थीं।
सुबह 8 बजे हम फिर चल पड़े। हम एक छोटे से दर्रे को पार करके ग्लेशियर तक पहुंचे और उसी रास्ते से वापस आये।
जब हम बेसकैंप पहुंचे, तो मैंने चार्लीन को यह समझाने की कोशिश की कि फ़ोटोक्सर के ग्रामीणों के लिए जीवन कितना कठिन है। ग्रामीण अपने न्यूनतम संसाधनों के साथ अपना गुजारा किया करते थे। लेकिन लद्दाख के हालिया आर्थिक विकास के चलते ग्रामीणों में नई ज़रूरतें विकसित हुई हैं। वे अब एक फोन, एक टेलीविजन और कई अन्य आधुनिक सुविधाएं चाहने लगे हैं। उनमें अब पैसा कमाने की जरूरत बढ़ गई है। लेकिन सच तो यह है कि फ़ोटोक्सर में आर्थिक अवसर बहुत कम हैं। इसलिए हमारे गांव के लोग नौकरी की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। कई लोग शहर जाकर ड्राइवर बन जाते हैं या सेना में नौकरी पा लेते हैं। ऐसा लगने लगा है कि इन ग्रामीणों की नज़र में गाँव की जीवनशैली का मूल्य खो सा गया है और मुझे यह दुखद लगता है।
मेरे गाँव का भविष्य क्या है?
जीवन का पारंपरिक तरीका लुप्त होता जा रहा है। हमारी विरासत का गहरा नुकसान हुआ है।
मैंने चार्लीन के साथ इन विचारों को साझा किया। क्या हम फोटोकसर में पर्यटन को आय का एक निरंतर स्रोत बना सकते हैं ताकि हमारा गांव युवाओं के रहने के लिए एक अच्छी जगह बना सके? चार्लीन अच्छी तरह से समझ गई थी कि मैं उससे क्या कह रही थी।
उसे इस बात का भी गर्व था कि वह मरे साथ लाल झील तक पहुंचने वाली पहली महिला ट्रेकर बनी।
चौथे दिन हमें बस गाँव तक वापस जाना था। अब बिना ज्यादा मेहनत किए हम अपने इस रोमांचक साहसिक ट्रेक को याद कर चलते रहे। तीन दिनों तक हम एक साथ हँसे और रोए, हमने बहुत सारी कहानियाँ साझा कीं, हमने एक साथ खेला, खाना बनाया। हमने एक-दूसरे की कंपनी का आनंद लिया और हमेशा के लिए दोस्त बन गए।
मैं अपने गांव के लिए इस तरह के पर्यटन की कल्पना करता हूं: नए और सभ्य लोगों से मिलना, प्यार बांटना, उनसे सीखना, उन्हें अपनी संस्कृति और अपने मूल आवास से परिचित करवाना, उन्हें लद्दाख की सुंदरता से चकित करना, और कुछ पैसे कमाना जिससे फ़ोटोक्सर बिना में जीवन में फिर से जीवंत हो जाए।