हिमालय के सिद्ध पुरुष
लेखक: छेरिंग नोंरबु
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मेंरा नाम छेरिंग नोंरबु है। मैं ग्राम डैमुल, ज़िला लाहौल स्पिति, हि० प्र० के निवासी हुँ। मुझे बचपन से ही गाँव के बुज़ुर्गो के साथ बैठकर पुराने कहावतें, कहानियाँ व सांस्कृतिक के विषय पर सुनने व जानने का शौक़ था। जब भी मुझे पाठशाला से छुट्टियाँ मिलता था मैं बुज़ुर्गों से मिलता था और उनसे अलग अलग कहानियाँ के बारे में जानकरियाँ हासिल करते थे फिर हर शाम को दिन के आपबीती बातें अपनी डायरी में लिख देता था ताकि भविष्य में भावी पीढ़ी के साथ जानकारी साँझा कर सकूँ ।
मैंने गियु मम्मी के बारे में कई लोगों से सुना परन्तु जाने का मौक़ा नहीं मिला। कुछ सालों के बाद मुझे अपने पिता जी के साथ गियु गाँव जाने का सौभाग्य मिला और पिता जी ने मुझे उनके दो दोस्तों से मिलाया एक जो वहाँ के बहुत ही प्रसिद्ध वैध (स्थानीय अमची) है और दुसरें श्री सोनम पलदन किपला जिन्हें पुराने गीत व संगीत की महारत हासिल था। मैं, मेरे पिता जी और उनके दो दोस्त अगली सुबह वहाँ के प्रसिद्ध मम्मी की दर्शन किया और इसके बाद वहाँ के ऊँची पठार में जड़ी बुटियाँ इकट्ठा करने गये। तब मैंने उनसे गियु मम्मी के बारे में पुछा तब उन दोनों ने मुझे मम्मी की पुरी जानकारी व कहानियाँ सुनाया।
उन दिनों मुख्यालय काजा से गियु गाँव तक की सम्पर्क मार्ग की सुविधा भी कुछ संतोष जनक नहीं था। उस वक़्त गियु गाँव मम्मी के कारण विश्व के मानचित्र आ गए और जिसके कारण गाँव में पर्यटन भी शुरु हो गई लेकिन विदेशी सैलानियों के लिए परमिट अनिवार्य होने के कारण बहुत कम लोग ही पहुँच पा रहा था। कुछ सालों के बाद मुझे कई बार गियु गाँव जाने का मौक़ा मिला हर बार वहाँ के दोस्तों के साथ मम्मी के विषय पर बातें करते थे और जिसका कुछ अंश इस प्रकार से है:-
ज़िला लाहौल सिपति उतर पूर्व हिमालय में बर्फ़ से ढकी पर्वत शृंखला से घेरा हिमाचल प्रदेश का सीमावती क्षेत्र है इसके पूर्व में तिब्बत, दक्षिण में शिमला, पश्चिम में कुल्लू और उतर में लदाख है।
प्राचीन काल में सिपति के गियु गाँव बहुत ही दुर्गम क्षेत्र में बसा हुआ है लेकिन सरकार की प्रयास से वर्तमान में यातायत की अच्छी सुविधा है और आज गियु गाँव एक सम्पन्न गाँव है जो समुद्र तल से १०४९९ फ़ीट की ऊँचाई पर बसा है और सिपति के मुख्यालय काजा से ७० कि॰ मी॰ की दुरी पर सिथत है। यहां की जनसंख्या लगभग २५० है।
गियु गाँव किसी परिचय की मोहताज नहीं है। आज विश्व के मानचित्र में छाया हुआ है। एक एेसी पहेली जो आज तक कोई नहीं बुजा पाई जिसे सथानीय भाषा में लामा कमबो (जिन्हें इनके नाम मालूम नहीं वह इस नाम से जानते है जैसे कि लामा- भिक्षु और कमबो-सुखा) और भारतवर्ष में प्राकृतिक मम्मी की नाम से जाना जाता है।
१४वी सदी में सिपति के गियु गाँव में एक असाधारण बालक ने जन्म लिया और उनका नाम संगा तनजिन (Sangha Tanzin) इन्होंने प्राथमिक शिक्षा वहीं पर भोटी भाषा के रुप में सिखा, इसके बाद उन्होंने हर क्षेत्र में जाकर शिक्षा और दिक्षा लिया बाद में बुद्ध के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया और वह सांसारिक चीज़ों को त्याग कर एक लामा बनने का निर्णय लिया कुछ समय के पश्चात एक गुफ़ा में ध्यान करने की व्रत लिया और वह काफ़ी लम्बी समय के लिए तपासया में लीन हो गई और उन्हें वहाँ पर ज्ञान की प्राप्ति हुई।
उन दौरान गियु गाँव में काफ़ी ख़ुशहाली एवं समृद्ध गाँव हुआ करता था लेकिन वह ख़ुशी ज़्यादा समय तक नहीं रहा क्योंकि वहाँ के पहाड़ों पर असुरों का वास था वह हमेशा अपनी असुर शक्ति से गाँव के लोगों को नुक़सान पहुँचाता था और उन्होंने इस गाँव को अभिशाप दिया। शाप से कैसे बचे गाँव वालों को कुछ भी उपाय सुझ नहीं पा रहा था उस दौरान गाँव के कुछ बुज़ुर्ग एवं बुद्धिजीवी ने राय रखा हमें लामा जी के पास अपनी समस्या को लेकर जाना चाहिए वहीं हमें इस समस्या से निजात दिलवा सकते हैं। उसके उपरान्त सभी गाँव वाले लामा जी के पास गई और अपनी समस्या को उनके पास रखा तब लामा जी ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए गाँव वालों को एक उचित वक़्त की इन्तज़ार करने को कहा। फिर लामा जी दोबारा कुछ वर्ष के लिए मन्तर उच्चारण, तन्त्रयान एवं रुद्र देवताओं की कठोर तपस्या की और उन्होंने अनन्त काल से मनुष्य जन्म और मरण के चक्र में उलझे है उसको इसी जीवनकाल में अपनी वश करने में सफल हो गई। उन्होंने एक ऐसी शक्ति प्राप्त कर ली जिससे वह किसी भी बुरी शक्ति को अपनी वश में कर सकते है।
आख़िर वह दिन आ ही जिसका पुरे गाँव वासियों को वर्षों से इन्तज़ार था इन्होंने पूर्णिमा के रात को असुरों का नाश किया और लामा संगा तनजिन ने लोगों को आश्वस्त भी करवाया कि भविष्य में जब भी इस गाँव को मुसीबत होगा वह गाँव की रक्षक बने रहेंगे और इसी तरह रक्षा करते रहेंगे।
उन्होंने गाँव वालों से अपनी इच्छा व्यक्त किया कि उनके गुफ़ा के ऊपर तीन स्तूपा की निर्माण किया जाए ताकि भविष्य में लोगों को बुराई पर सच्चाई की जीत का प्रतीक मिलें। लोगों ने उसी वर्ष लामा जी के दिशा निर्देश के अनुसार स्तूपा का निर्माण किया।
इस काल चक्र में स्थानीय लोग लामा जी को भुल गई कि उसी गुफ़ा में उनके रक्षक आज भी ध्यान में है और उनकी कृपया दृष्टि सदा गाँव में पड़ रहा है। समय बीतता गया वर्ष १९७५ को भूकम्प के झटके आए जिससे पुरे हिमालय में भरी तबाही हुई जिसके कारण लामा जी के तीनों स्तूपा भी नष्ट हो गई।
तिब्बत की सीमा रेखा नज़दीक होने के कारण यहाँ पर हमारे जवानों की तैनाती शुरू हो गए है जिसके चलते वर्ष १९९५ में उक्त जगह पर सड़क निर्माण का कार्य शुरु हुआ जब वहाँ पर काम चल रहे थे उन दौरान एक टुटा हुआ स्तूपा मिला ओर उसी स्तूपा को हटाते हटाते एक मज़दूर का औज़ार किसी खोपड़ी में लगा जिसमें से खुन निकलना शुरु हो गई उस वक़्त लोगों ने सोचा किसी गाय की बछड़ा के सिर होगा लेकिन जैसे ही मज़दूर और जवानों ने उक्त खोपड़ी को निकालने की कोशिश कर रहें थे उन दौरान लोगों की हैरानी बढ़ती जा रहे थे जब पुरी तरह बाहर निकाला तो सभी लोग हैरान, परेशान व दंग रह गई पहली बार होलीवुड के फ़िल्मों से बाहर निकल कर साक्षात सामने मम्मी को देख रहे थे जिसे जवानों ने अपने निगरानी में रखा और भारत सरकार को इस की जानकारी दी। फिर जाँच एेजेंसी की टीम ने मम्मी की पुरे जॉच पड़ताल की और जॉच में यह बात स्पष्ट हो गई कि यह मम्मी १४वीं सदी है और ५५० वर्ष पुरी हो गई है लेकिन हैरानी की विषय यह है कि आज भी बाल और नाख़ुन बढ़ रहा है। जिसका मतलब यह है कि आज भी उनका आत्मा ज़िन्दा है और अपने शरीर में वास करते है।
जिसे ही यह ख़बर फैली गियु गाँव रातों रात फ़ेमस हो गई जिसको कवर करने के लिए देश के बढ़े बढ़े न्यूज़ एेजेंसी गाँव पहुँचने लगे। रातों रात फ़र्श से अरश पर पहुँच गए। स्थानीय जनता ने अपने रिनपोछें एवं इष्ट देवता से मम्मी के बारें जानकारी लिया तब उन्हें पता चला यह मम्मी कोई ओर नहीं उनके ही रक्षक व लामा संगा तनजिन ही हैं जो आज भी गाँव की रक्षा हेतु ज़िन्दा है। समस्त ग्राम वासियों ने भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों से निवेदन किया कि मम्मी को गाँव वालों को सौंपा जाए ताकि लामा जी के लिए मन्दिर बनाया जा सकें। लोंगो की भावनों को मध्य नज़र रखते हुए जवानों ने मम्मी को गाँव वालों के हवाला कर दिया है।
आज लामा जी के लिए बहुत ही खुबसुरत मन्दिर का निर्माण किया गया है जहाँ पर हरेक घर से हर रोज़ बारी बारी से धूप और दीया जलाने जाते है और बुद्ध पूर्णिमा व अन्य शुभ दिवस (बुद्धिस्ट कैलेण्डर के अनुसार) पर सभी गाँव वासी मन्त्र आचरण करते है और पुरी श्रद्धा के साथ अपनी मनोकामना माँगते है। आज स्थानीय ग्राम वासियों ने मम्मी को उक्त मंदिर में बहुत ही अच्छी ढ़ग से बिना किसी रासायनिक पदार्थ के उसे परिरक्षित (Preserved) करके रखा है जिसे देखने व दर्शन करने देश विदेश से पर्यटक आते है ओर इस मम्मी का गुण गाते है।
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*Cover image: Mayura Mali
[…] Cherring Norbu, an amchi (traditional medicine practitioner) from Demul village in Spiti (Himachal Pradesh), shares the unsolved mystery of a monk who vowed to always protect the mountain village of Giu 550 years ago. His hair, nails and blood are evidence that he still does! […]