
हिमालय की एक महान सन्त
लेखक: छेरिंग नोंरबु
Read the translated story in English
मेंरा नाम छेरिंग नोंरबु है। मैं गाँव- डैमुल, ज़िला- लाहौल स्पिति, (हि० प्र०) के निवासी हुँ। प्राचीन काल से ही हिमालय क्षेत्र के गुफ़ाओं में अलग अलग धर्मों के बहुत सारें योगियों ने कठोर तप करके सिद्धि प्राप्त करते आ रहा है उन्हीं गुफ़ाओं में से एक स्पिति के डैमुल नामक गाँव से १.५ कि०मी० दुर ठीक उतर दिशा में बहुत ही पुराना व एेतिहासिक खपसा नामक गुफ़ा है जहां के पत्थरों में बहुत सारे पवित्र चिन्ह है जिसे देखने व दर्शन के लिए दुर दराज़ से श्रद्धालु आते है। इस गुफ़ा में हज़ारों वर्षों से गांव एवं अन्य क्षेत्र की बहुत सारे सिद्ध पुरुषों ने तपस्या किया और ज्ञान प्राप्ति के पश्चात उन्होंने बाकि के ज़िन्दगी मानव कल्याण के लिए व्यक्त किया उनमें से एक महान सन्त जिन्हें हिमालय के योगी के नाम से भी जाना जाता है। मुझे उनकी दर्शन करने की सौभाग्य कई बार मिला लेकिन पिछले वर्ष जब डैमुल गाँव के खपसा नामक गुफ़ा में महीने रुके तब मुझे उनकी जीवन यात्रा के बारें में स्वयं उनसे एवं मलिंग (किन्नौर) गाँव के कुछ बुद्धिजीवियों से जानने का सुअवसर मिला। उन्हीं यात्राओं के विषय पर एक संक्षिप्त में वर्णन उल्लेख करना चाहूँगा जो इस प्रकार से है-


हिमालय के गोद में बसा ज़िला किन्नौर देव भूमि हिमाचल प्रदेश के पुह नामक गाँव के गोंगमा घर में 20 अप्रैल 1962 को एक महान सन्त की जन्म हुआ उनका नाम गोविंद सिंह उर्फ़ तनजिन लुन्डुप है। उनके पिता जी का नाम गेलेग पासंग उर्फ़ गुरदयाल सिंह और माता जी का नाम सोनम छोड़ोन है। इनके तीन बहन और एक छोटा भाई भी है। गर्भ अवस्था के दौरान उनके माता जी को एक अलौकिक शक्ति का एहसास हुआ और सपने में भी उन्हें शुभ संकेत मिलनें लगा कि एक सिद्ध पुरुष का जन्म होने वाला हैं। जन्म के पश्चात परिवार वाले बालक की भविष्य वाणी को जानना चाहते थे जिसके लिए सभी परिवार वाले स्थानीय गुरु जी के पास गई ओर अपनी इच्छा रखा तब गुरु जी ने कहा कि पिछले जन्म में वह एक तपस्वी योगी थे और इस जन्म में भी वह घर गृहस्थी त्याग कर सत्य और ज्ञान की खोज में चलें जाएगा और भविष्य में एक महान योगी बनेगें परन्तु उनके पिता जी को यह मंज़ूर नहीं था क्योंकि वह उन्हें अपनी तरह एक किसान व व्यापारी बनाना चाहते थें। उस वक़्त लदाख से भी एक खोज टीम पुह गाँव पहुँचा जो वहाँ के एक महान योगी के पुनर्जन्म के खोज में ढूँढने आया लेकिन उनके पिता जी अपने इकलौता पुत्र को सन्यासी व लामा बनाना नहीं चाहता था इसलिए खोज टीम को यह कह कर वापिस कर दिया कि उनके घर में बच्चा नहीं जन्मा है।

योगी जी के बचपन बहुत ही लाड़ पाड़ से गुज़रा और बचपन से ही बहुत ही शांत मन, संगीत प्रेमी, करुणा व सदैव दूसरों की सेवा में तत्पर रहनें वाला व्यक्तित्व था। इनकी माध्यमिक तक की शिक्षा गाँव में और आगे की शिक्षा स्नातक तक चण्डीगढ़ में पुरा किया और इसके बाद गाँव वापस लौट आई। गाँव लौटने के बाद वह अपने दादा जी से बुद्ध के ज्ञान व शिक्षा के विषय पर चर्चा करते थे और उनकी रुचि भी धार्मिक कार्यों में ज़्यादा लगनें लगा और वहाँ के टा- लंक मंदिर में मणि दुंग- ज्ञुर में परिक्रमा करने जाते थें। वहाँ के बुज़ुर्गो के साथ बैठकर बुद्धिस्ट के बारें में ज्ञान अर्जित करने लगा। उनके रुचि को देखते हुए परिवार वालें डर सी गई कहीं वह भविष्यवाणी सही न हो जाए इसलिए परिवार वालों ने उनके विवाह करवाने का फ़ैसला लिया और 25 वर्ष के आयु में उनकी इच्छा के ख़िलाफ़ किन्नौर की रीति रिवाज के अनुसार पुह गाँव के सबसे ऊँची ख़ानदानों मेसे एक लोटस की सुपुत्री कुमारी रिंगजिन से विवाह करवाया। उन दौरान मामा जी को व्यापार के सिलसिले में तिब्बत काफ़ी बार जाना पड़ता था। इस बार उन्हें भी साथ लेकर गई और काफ़ी भेड़ बकरियाँ ख़रीद कर लाया। उस समय शिपकी दर्रा होते हुए तंग नालियों व पहाड़ के रास्ते से गुज़रना पड़ता था जिस कारण काफ़ी भेड़ मारे गई और उनके पिता जी उन्हें मीठ बेचनें के लिए मजबूर करवा रहें थे जबकि गोविंद जी के मन इन चींजो को करने की अनुमति नहीं दे रहा था।
उन दौरान उनकी पत्नी भी गर्भ अवस्था में थी इसलिए इन्होंने फैंसला लिया कि पुत्र मोह होने से पहले ही सांसारिक चीज़ों को त्याग लें। कुछ समय के पश्चात उनके पिता जी ने उन्हें ट्रक ख़रीदने हेतु काफ़ी रक़म के साथ चण्डीगढ़ जाने को कहा परन्तु इन्होंने उक्त रक़म को घर में ही छोड़ कर गृह त्याग कर दिया और वह ज्ञान व गुरु की खोज में निकल पड़ा। गुरु जी के घर छोड़ने के बाद उनके धर्म पत्नी को ज़्यादा समस्या का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि किन्नौर के रिति रिवाज के अनुसार संयुक्त परिवार में रहते है अौर परिवार वाले भी उनकी इस त्याग की अहमियत को समझ गयी थी। जब ज्ञान की खोज पुरी हुई तब इन्होंने अपने परिवार से मिलें। मैने जब से गुरु जी के बारे में सुना तबसे आश्चर्य हुँ कि इस कलयुग में इतना भी कौन अपने परिवार को छोड़कर बुद्ध के शरण में जा सकते है।

Govind had three sisters and a younger brother, and his childhood was full of love and affection. As a young boy, he was compassionate, loved music and felt eager to serve others. He pursued his graduation in Chandigarh and returned to his village with an increased interest in spirituality. He would discuss the teachings of the Buddha with his grandfather, and go to Ta-Lang Temple, to Mani Dung Gyur, for circumambulation. There, he would sit among the elderly to enhance his Buddhist learnings.
Upon seeing his interest in Buddhism, his family worried that the prediction about his future might come true. They decided to get him engaged against his wish at the young age of 25. In a traditional Kinnauri ceremony, he was married to Ringzin, the daughter of Pooh’s most elite and wealthy family.
In those days, Govind ji’s maternal uncle used to frequent Tibet for business. He took Govind ji along and bought him a flock of sheep and goats on the trip to initiate him into the work. The mountain trails were marked by cliffs and sheer drops, which resulted in many sheep slipping and dying. His father tried to force him to sell the meat of the dead sheep, but Govind ji’s heart wouldn’t allow it. When trading sheep didn’t work out, his father gave him a large sum of money to go to Chandigarh to purchase a truck. But Govind ji had other intentions.
By now, his wife was pregnant, and he felt he needed to denounce worldly affairs before he got attached to his child. Soon, he left both, his home and the money his father had given, in search of knowledge and a Guru. According to the customs of Kinnaur, his wife and child continued to be part of the joint family. Personally, when I heard this, I couldn’t help but wonder how difficult it must be for someone to leave their family during this kalyug age (the age of downfall) to follow the Buddha’s path.

सबसे पहले इन्होंने बीड के गोन्पा में दाख़िला लिया और वहाँ के छोटे छोटे लामों के साथ भोटी भाषा के लिपियाँ सिखने लगा और उन्होंने अपने प्राथमिक शिक्षा वक़्त से पहले पुरा कर लिया। उसके बाद भी काफ़ी समय तक बीड में ही बुद्धिस्म पर ज्ञान अर्जित करते रहें उनके कठोर परिश्रम और लगन से सभी गुरु दंग रह गई और इसके बाद ओर ज्ञान की खोज हेतु मैसूर के “बेल कोपा” में एक तिब्बती कालोनी है वहाँ के गोन्पा में अपनी आगे की पढ़ाई बिना दाख़िला लिये पुरा किया उस समय इन्होंने वहाँ के रिन्पोछे एवं लामाओं को अंग्रेज़ी भी सिखाया। उन दौरान उन्हें ठहरने के लिए उचित प्रबन्ध भी नहीं था ओर काफ़ी तंगी के साथ अपनी पढ़ाई को पुरा किया।
यहाँ पर पुरी शिक्षा व दीक्षा लेने के बाद एक लम्बी तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े जिसमें मुख्य रुप से भगवान बुद्ध के जीवन सम्बन्धित तीर्थ स्थलों, बौद्ध महाविहार एवं पवित्र गुफ़ाओं की दर्शन करने के बाद उनको अपनी जीवन की मुख्य उद्देश्य मिल गई। इसके बाद अपने दादा जी के द्वारा निरमण्ड में बने घर में कुछ वक़्त तप करने का फ़ैसला लिया परन्तु उससे पहले वह अपने बहनों से मिलने सोलन (हि०प्र०) चली गई क्योंकि काफ़ी वर्षों के बाद मिलना सम्भव हो पाई। जब बहनों से मिली उनके ख़ुशी की ठिकाना नहीं रहा। इसके बाद निरमण्ड चली आई जहाँ सबसे पहले अपने दादा जी के द्वारा बने घर की मरम्मत शुरु किया जब रहने योग्य बने तब इन्होंने वहाँ पर ढाई वर्ष तक काफ़ी ध्यान भक्ति व साधना की तथा उपरान्त उनके माता जी की इच्छा के अनुसार एक वर्ष पुह गाँव में रहा ओर वहाँ पर अपनी दैनिक पुजा पाठ व ध्यान जारी रखा। बेटे की रुचि को देखकर उनकी माँ भी दंग रह गई जिसके बाद एक वर्ष रिवाल्सर में रहा जहाँ पर तन्त्रायाना बुद्धिस्म (Nyingmapa Sect) के संस्थापक गुरु पद्म सम्भव (गुरु रिन्पोछे) के पवित्र आत्मा आज भी रिवाल्सर झील (छो पेम्मा) में विराजमान है वहाँ पर रुद्र देवगणों के तप किया।

जिसके बाद दुबारा अपनी जन्म भूमि पर लौट आयी, परन्तु कुछ दिनों के बाद ग्राम नाको (किन्नौर) के प्रतिनिधि गण उनसे मिलने पहुँचा ओर उनको आमन्त्रित किया। उन्होंने निमन्त्रण स्वीकार किया ओर नाको के लिए रवाना हो गई। वहाँ पर काफ़ी दिन बिताने के बाद उन्होंने सोमाड॰ (च्रकसंवर) के पवित्र गुफ़ा में तपस्या करने की निर्णय लिया ओर अपने समानों सहित निकल पड़े। सोमाड॰ (हंगरंग घाटी, किन्नौर, हि०प्र०) बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों मेंसे एक है जहाँ पर पाँच महागुफा है यहां के शिलाओं में मैत्रेय बुद्ध, आचार्य पद्म सम्भव (गुरु रिन्पोछे) एवं डाकिनियों के स्नान के चिह्न है। यहाँ पर बहुत सारे लोग व साधक ने कठोर तपस्या करके इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त कर विशेष जनकल्याण करते है। यहाँ पर आज भी देश विदेश से श्रद्धालु लोग दर्शन व परिक्रमा के लिए आते है ओर मनोकामना पुर्ण होता है। यहाँ पर इन्होंने एक वर्ष की कठोर तपस्या किया जिन दौरान उन्हें खाद्य सामग्री की कमी का अभाव ओर सर्दियों में भारी हिमपात होने के कारण जलाने व खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं मिल पाना इन सभी समस्यों का सामना करते हुए इन्होंने एक वर्ष पुर्ण किया। इसके बाद टशी गंग गाँव होते हुए नाको गाँव लौट आए जहाँ पर पुरे ग्राम वासी बड़ी ज़ोर शोर से उनके स्वागत किया। अगले दिन नाको से मलिंग के लिए रवाना हुआ जहाँ पर बहुत ही प्रसिद्ध पूजनीय लामा रिंगजिन छेतन जी से अार्शीवाद व शिक्षा दीक्षा के लिए आग्रह किया। लामा जी ने इनके लगन व कठोर परिश्रम को देखकर दीक्षा देने के लिए राज़ी हो गई। यह जानकर उनकी मन में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी फिर वहां के रिश्तेदारों ने ठहरनें व खाने पीने के लिए समान प्रबन्ध करवाया ताकि जल्द से जल्द गुरु से दीक्षा ले सके।

कुछ दिनों के पश्चात गुरु जी ने उन्हें दीक्षा देना आरम्भ किया। वह अपने गुरु के हरेक उपदेश को बढ़ी सहजता के साथ सुनता था ओर अमल में लाते थे इन्होंने बढ़ी लगन के साथ ज्ञान अर्जित करना शुरु किया। । इस तरह से दिन रात मेहनत करके दीक्षा पुर्ण किया। गुरु जी के अनुमति से कुछ समय गाँव के मन्दिर में पुजारी का कार्यभार भी सम्भाला। इसके बाद इन्होंने मलिंग वासियों के समक्ष अपने इच्छा व्यक्त किया कि वह एक लम्बी तपस्या में बैठना चाहते है। यह जानकार ग्रामवासियों ने उनके लिए ठहरने के लिए कमरा तैयार किया ताकि सर्दी के मौसम में भी आराम से ठहर सके। जहाँ पर इन्होंने दिन रात चार वर्ष कठोर तपस्या किया उन दौरान वह किसी से भी नहीं मिलते थे अगर कुछ ज़रूरी कार्य हो तो पत्र के द्वारा आपसी संदेश अदान प्रदान करते थे। इस तपस्या के दौरान भोजन न के बराबर लिया ओर गाँव वालों की सहयोग से पानी भी सप्ताह में मात्र १० लि० ही इस्तेमाल करते थे। इसके पश्चात तीन वर्ष रामपुर बुशहर में अपने बहन के घर पर एक कमरें में तपस्या किया वहां पर भी किसी से भी मिलने की अनुमति नहीं थे।
उस समय पुह गाँव से कई बार गाँव के प्रतिनिधि मण्डल मिलने पहुँचे ताकि कुछ वर्ष गाँव के गुफ़ा में समय बितायें। रामपुर के बाद इन्होंने पृथक गाँव के गुफ़ा में तीन वर्ष की तपस्या किया जिसमें मुख्य रुप से सभी जीव जन्तु व मानव कल्याण हेतु डाकनी (टो मा) की विशेष साधना किया जैसे ही तीन वर्ष पुरा हुआ हिमालय के हर क्षेत्र से एक जन सैलाब उनके दर्शन के लिए आना शुरु हो गई तब स्थानीय ग्राम वासियों ने एक महीने की प्रवचन आयोजन करवाया जिसमें बहुत सारे देव एवं हर क्षेत्र के लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। इसके बाद ग्राम नेसंग के जनता ने वहाँ के प्रसिद्ध नाईजल गुफ़ा (जहाँ पर स्वयं गुरु पद्म सम्भव तपस्या कर चुके है ओर यहाँ के पत्थरों में पवित्र चिन्ह के दर्शन हेतु दुर दुर से श्रद्धालु आते है) में तपस्या के लिए प्रार्थना लेकर पुह गाँव पहुँचे। लोगों की प्रार्थना को स्वीकार किया ओर पुह से नेसंग गुफ़ा तक पद यात्रा करते हुए जाने की इच्छा व्यक्त की। उसके बाद हरेक गाँव में रुकते हुए नेसंग गाँव पहुँचे वहाँ पर स्थानीय लोगों को बुद्ध की मार्ग पर चलने की अपील की ओर इसके बाद नाईजल (नेह- जल) गुफ़ा के लिए निकल पड़े। यह गुफ़ा लगभग १५००० फ़ीट के ऊँचाई पर स्थित है। सर्दियों में काफ़ी बर्फ़बारी होता है जिस कारण यहाँ की तापमान -३५ डिग्री तक गिर जाता है। यहाँ पर लगभग डेढ़ वर्ष तक तपस्या किया।


जैसे ही तपस्या पुर्ण हुआ इसके तुरन्त बाद देहरादून तक पद यात्रा करते हुए निकल पड़े यह पद यात्रा एक एेतिहासिक पद यात्रा बन गई जिसमें सैकड़ों लोग जुड़ते गई। जहाँ पर भी रुके वहाँ पर स्थानीय लोगों ने सभी यात्रियों के लिए ठहरने व खाने पीने की व्यावस्था की ओर सभी लोगों ने अपने अपने समस्या साँझा किया ओर आशीर्वाद लिया। वर्ष २०१४ से लेकर आज तक इन्होंने अप्पर किन्नौर एवं स्पिति के लगभग सभी गाँवों में आगमन किया ओर यहाँ के लोगों से अहिंसा एवं सत्य की राह पर चलने की अपील किया। तत्पश्चात इन्होंने नेपाल, बोध गया, नालन्दा, सारनाथ, वैशाली एवं भूटान नामक तीर्थ स्थालों के दर्शन के लिए गई। इसके अलावा स्पिति के पोह, पोमारंग, माने एवं डैमुल गाँव में लम्बे समय तक उनके शिष्याओं को बोधिचित एवं शुन्यता पर शिक्षा दिया ओर यहाँ के स्थानीय देवता (देव) ने भी स्थानीय लोगों से इनके प्रवचन को अपने ज़िन्दगी में अमल पर लाने की गुज़ारिश किया। आज किन्नौर ओर स्पिति ही नहीं पुरे हिमालय में उनके अनुयायी हैं ओर उन्हें हिमालय के योगी के नाम से जाना जाता हैं।
मेरे गाँव में सभी बुज़ुर्ग एक साथ बैठकर हमेशा लामा गोविन्द जी के जीवन यात्रा के बारे में बहुत सारे बातें करते थे ओर कई तो रोना शुरु कर देते थे लेकिन उस वक़्त में बालक था इसलिए ज़्यादा समझ नहीं पायी। मुझे काफी समय के बाद उनके परिवार त्यागना, ज्ञान प्राप्ति, कठोर तपस्या एवं लोगों को भगवान बुद्ध के राह पर चलने व करुणा के विषय पर गाँव गाँव जाकर लोगों को प्रेरित करना बहुत ही प्रभाव किया। इस युग में एेसा योगी व संत किसी ने नहीं देखा है जिन्होंने अपनी मेहनत ओर लगन से भाग्य को ही बदल दिया है इसलिए भावी पीढ़ी के लिए एक आदर्श व प्रेरणा है। आज सिद्ध हो गई है कि इंसान अपने मेहनत से ही भाग्य को बनाता है। उन्ही दौरान मुझे उनसे प्रत्यक्ष रुप से पोमारंग (पोह) गाँव में पहली बार मिलने का सौभाग्य मिला। मुझे उस वक़्त कई विषयों पर चर्चा करने का मौक़ा मिला। इस मुलाक़ात से मुझे काफ़ी प्रेरणा मिला ओर मुझे धार्मिक व सामाजिक कार्यों में रुचि भी बढ़ने लगा।

Read the translated story in English
Meet the storyteller

