हिमाचली उत्सव जिसमें हिरन हर घर के दरवाज़े पर नाचती है
लेखिका: कनिका मेहता
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हरन हमारे यहाँ के त्यौहारों में से एक ख़ास त्यौहार है जिसमें हम हरन निकालते हैं। यह हरन पूरे कुल्लू ज़िले में निकाली जाती है। इसे कुल्लू दशहरे के समय निकाला जाता है। यह त्यौहार विशेषकर बच्चोंको अच्छा लगता है इसलिए वे इसके आने के लिए उत्सुक होते हैं। क्योंकि हमारे यहाँ हरन दशहरे के समय निकाली जाती है, इस समय बच्चों को भी ७ दिन की छुट्टी होती है। इन छुट्टियों को बच्चे बड़े मज़े से गुज़ारते हैं। इसके आने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। क्योंकि सभी बच्चे कुल्लू दशहरे में नहीं जाते हैं, वे दशहरे से ज़्यादा हरन में दिलचस्पी रखते हैं।
हमारे बुज़ुर्गों का मानना है कि हरन की शुरुआत रामायण के समय में हुई। राम ने हरन निकाली ताकि सीता माता को छुपाकर उनके वास्तविक रूप की जगह बनावटी सीता को ला सकें। ये कार्य भगवान राम ने वनवास जाने से पहले किया था। तबसे आज तक इसे मनाते हैं।
बच्चों के लिए छुट्टियों में यह मनोरंजन करने का एक तरीका है। वे हरन को सजाने के लिए कई फूल लाते व मालाएँ बनाते हैं। हमारे यहाँ हरन निकालने से पहले उसको कई तरीकोंसे सजाया जाता है जैसे मक्की के डंडे के सींग लगाए जाते हैं और उनको फूलोंसे सजाते हैं। हरन को कुल्लुवी पट्टू पहनाते हैं और ऊपर से सफ़ेद दुपट्टा डालते हैं। गले में मालाएँ डाली जाती हैं। जब हरन सजाई जाती है तो उसका आकार हिरन के जैसा दिखता है।
हरन के अंदर दो बच्चे होते हैं। आगेवाला बच्चा खड़ा होता है और पीछेवाला बच्चा झुका हुआ होता है और वे दोनों नाचते हैं। नाचने के लिए यहाँ के वाद्ययन्त्र जैसे ढ़ोल नगाड़े को साथ लाया जाता है और जब यह हरन नाचती है तो छोटे बच्चों को बड़ी ख़ुशी होती है। वे हरन के आगे पीछे खड़े होकर ज़ोर से गाने गाते हैं। यह गाने सिर्फ हरन निकालते समय गाया जाता है जिसे सब इकट्ठे गाते हैं। जैसे की –
हुआली हुआली वागे निखल घर मालिका खोले आई होरनि, होरनि ऐ गै
यह वह गीत है जो हम उस समय गाते हैं जब हरन निकलती है। इसे पहाड़ी भाषा में गाया जाता है। बच्चों को तो यह गाना गाने में इतना मज़ा आता है कि वे इसे ज़ोर-ज़ोर से गाते हैं।
हरन को बच्चे सभी घरोंमे ले जाते हैं। शाम के समय सभी बच्चे इकट्ठे होते हैं। इसमें छोटे से लेकर बड़े बच्चे भी होते हैं। लेकिन छोटे बच्चे जिनकी उम्र ९-१६ साल तक की होती है वे ज़्यादा होते हैं।
मैं भी पहले हरन को जाती थी। मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं पहली बार तब गई मैं ९ साल की थी और मैंने अपनी मम्मी को कहा कि मुझे हरन के साथ जाना है। लेकिन मुझे मम्मी नहीं भेज रही थी। फिर मेरी और सहेलियाँ भी आई और मुझे मम्मी ने भेजा।
हम हरन को दशहरे के सातों दिन निकालते हैं और इन सात दिनों में हर एक दिन में एक या दो गाँव चुने जाते हैं जिनमें हरन ले जाते हैं और हरन को एक एक घर में नचाते हैं। इसके बाद घरके लोग हमें अनाज, जैसे मक्की और गेहूँ, और पैसे देते हैं। कुछ लोग अखरोट भी फेंकते हैं और बच्चे उन्हें पकड़ने के लिए बहुत ज़्यादा खुश होते हैं। जब हम शाम को हरन को ले जाते हैं तब कुछ बच्चे रोटियाँ भी छुपाकर लाते हैं ताकि वे रस्ते में खा सकें। कई बच्चे तो सेब भी लाते हैं। बच्चों के लिए यह एक मज़ेदार पल होता है। सभी साथ में जाते हैं। रस्ते में अगर ठंड लगती है तो वहाँ आग जलाते हैं और बच्चे वहाँ थोड़ी देर नाचते हैं और बहुत खुश होते हैं।
एक बार जब मैं छोटी थी और हरन को गई थी तो मैंने और मेरी सहेली ने रोटी सब्ज़ी साथ ली ताकि रस्ते में भूख ना लगे क्योंकि हरन को हमारे गाँव से काफी दूर ले जाते हैं और काफी लम्बा रास्ता होता है। जब मुझे भूख लगी तो हमने अपनी रोटी सब्ज़ी निकाली। हरन में आए बाकी बच्चों ने भी अपनी रोटी सब्जी निकाली और हमने साथ में खाई। लेकिन एक दिन मैं हरन जाने की वजह से इतनी खुश थी की मैने न खाना खाया था और न ही साथ में रोटी ले गई। फिर जब मुझे बहुत भूख लगी तब हम सब बच्चोने मिलके लोगों के अखरोट और सेब चुराए और साथ में खाए। मुझे हरन बहुत अच्छा लगता है क्योंकि ऐसे लगता है जैसे कोई नाटक प्रस्तुत किया जा रहा है जिसमें सिर्फ मनोरंजन हो।
हरन का कार्यक्रम सिर्फ रात को ही होता है। दिन में हरन नहीं निकाली जाती। लेकिन बच्चोंको हरन का नृत्य देखने में इतना मज़ा आता है कि वे अंधेरे में भी चलने को तैयार होते हैं। जब मैं हरन में जाती थी तब मुझे मज़ा तो बहुत आता था लेकिन रात को डर लगता था इसलिए मुझे बीच में रखते थे। एक इन तो मैं रात को लोगोंके खेत में गिर गई क्योंकि मैं हरण के अंदर थी और मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मेरे साथ जो हरन में आगे खड़ा हुआ बच्चा था वह भी खेत में मेरे साथ गिर गया। बाकी सारे बच्चे हसने लगे। हम दोनों उठे और उनको हँसाने के लिए और नाचने लगे।
हमारे लिए यह सिर्फ एक पुरानी चली आई रीति ही नहीं है बल्कि ख़ुशी का, मनोरंजन का साधन है। इस त्यौहार का बच्चे बहुत इंतज़ार करते हैं। क्योंकि इसमें बच्चोंको सबसे ज़्यादा आनंद मिलता है। वे दशहरे की ७ दिन की छुट्टियाँ खुशी से और मनोरंजन से व्यतीत करते हैं। दशहरे के अंतिम दिन इस हरन को अपने गाँव में नचाया जाता है। सारे बच्चे ख़ुशी से नाचते हैं और ढोल बजाते हैं। जब हम लोगोंके घरोंसे अनाज लाते हैं तो वह दूर दूर से उठाना पड़ता है और जब हमारा यह त्यौहार ७ दिन के बाद खत्म हो जाता है तो हम सारे अनाज को बेचकर पैसे इकट्ठे करते हैं और गाँव में दावत देते हैं जिसमें सभी को शामिल किया जाता है ख़ासकर उन बच्चोंको जो हरन में आए होते हैं। सब मिलकर खाना खाते हैं और अपने घर जाते हैं और इसी त्यौहार के वापस आने का इंतज़ार करते हैं। सभी बच्चों को यह त्यौहार बहुत अच्छा लगता है और मुझे भी हरन निकालना और उसके साथ जाना बहुत अच्छा लगता है।
*Cover image: Mathew Schwartz on Unsplash
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