बचपन से ही मुझे अपना ननिहाल काफी अलग लगता था, शायद इस ही लिए कि साल में कुछ ही दिनों के लिए हम सापनी जा पाते थे। मगर इस बार मुझे पूरा मौका मिला वहां के सबसे मशहूर त्यौहार ‘उख्यांग’ में भाग लेने का।
सापनी का पारम्परिक नृत्य (नागेस कयांग)करते हुए
उख्यांग, जिसे ‘फूलों का मेला’ भी कहा जाता है, हिमाचल प्रदेश के पूरे किन्नौर में सितंबर के महीने में मनाया जाता है जब सारे फूल, विशेष रूप से पर्वतीय चोटियों के उच्च ढलानों पर पाए जाने वाले विरल प्रजाति (जैसे ब्रह्मकमल, रा ऊ और शु पाटिंग), पूरी तरह खिल जाते हैं। ये कोई आम त्यौहार नही है, बल्कि एक भव्य उत्सव है जहां देवी–देवताओं के आशीर्वाद से प्रकृति के प्रति आभार प्रकट किया जाता है। हालांकि इस त्यौहार का जश्न किन्नौर के सभी गांव में मनाया जाता है, लेकिन मनाने का तरीका सबका अलग है। मेरे लिए मेरे ननिहाल का उख्यांग सबसे करीब है क्योंकि इस बार मौजूद रहकर, मैं अपनी मां की कहानियां जी रहा था।
हमारे पारम्परिक नाच (कायंग) के बीचो-बीच बच्चे वाद्य यंत्र बजाते हुए
इस त्यौहार का हिस्सा बनना मेरे लिए काफी अनोखा और निजी अनुभव रहा। ज़्यादातर गांव में ये दो दिन में समाप्त हो जाता है, मगर यहां ये पूरे पांच दिन तक मनाया जाता है। पहाड़ी चोटियों से गांव के मंदिर तक, देवी–देवता और उनका आशीर्वाद सब जगह फैला हुआ प्रतीत होता है, मानो जैसे विरल फूल सब जगह उग आए हों। इस फिल्म के माध्यम से मेरी कोशिश है कि गांव के जिंदादिल लोगों की बातें और अपना अनुभव साझा कर सकूं।
देवी-देवताओं को स्थानीय लोगों द्वारा साथ नचाते हुए
Adit Negi is a post graduate in Film Studies from Ambedkar University. Having lived most of his young life in the cities of the ‘plains’, he is making his way forward in life by going back to his village Kupa (Kamru) in Kinnaur district of Himachal Pradesh, where he has been living now for the past 4 years. In his quest to engage with the rich cultural heritage of this region, he has chosen to be physically present and live and learn in the moment.
अदित नेगी ने अंबेडकर यूनिवर्सिटी से फिल्म स्टडीज में पोस्ट ग्रेजुएशन किया हैं। अपना अधिकांश युवा जीवन 'मैदानी' क्षेत्र के शहरों में बिताने के बाद, वह हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में अपने गांव कूपा (कामरू) वापस जा, वहां पिछले 4 वर्ष से रह रहे हैं। इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ रूबरू हो, वह अपने गांव में रहकर सीखने और खोज करने में अपने आगे की दिशा ढूंड रहा है।
Voices of Rural India is a not-for-profit digital initiative that took birth during the pandemic lockdown of 2020 to host curated stories by rural storytellers, in their own voices. With nearly 80 stories from 11 states of India, this platform facilitates storytellers to leverage digital technology and relate their stories through the written word, photo and video stories.
ग्रामीण भारत की आवाज़ें एक नॉट-फ़ॉर-प्रॉफ़िट डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म है जो 2020 के महामारी लॉकडाउन के दौरान शुरू हुई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीण कहानीकारों द्वारा उनकी अपनी आवाज़ में कहानियों को प्रस्तुत करना है। भारत के 11 राज्यों की लगभग 80 कहानियों के साथ, यह मंच कहानीकारों को डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर और लिखित शब्द, फ़ोटो और वीडियो कहानियों के माध्यम से अपनी कहानियाँ बताने में सक्रीय रूप से सहयोग देता है।