
भूत-प्रेतों के दुनिया में माँ की हंसी की तलाश
लेखक: आराधना
Read the translated version in English
“अरे कितने दिनों से बिस्तर पर लेटी है! लेटे-लेटे क्या हालत हो गई है! चेहरे की रौनक मानो कोई चुरा ले गया हो! तुम लोग ज्यादा अस्पताल-वस्पताल के चक्कर में मत रहो। इन्हें किसी बाकी को दिखा लाओ।”, पड़ोस की भाभी ने हामी भरते हुए कहा। पिछले तीन चार महीनों से मेरी मां ने न ही कुछ बोला और न ही कुछ किया। खाना तो खा ही नहीं रही थी जैसे मानो भूख कहीं उड़ गयी हो। बस बिस्तर पर लेटे-लेटे हमको देखे जाती और रोती।
हमने बहुत से अस्पतालों में उनका इलाज करवाया, बस एक ही आशा रहती किसी अस्पताल की दवाइयां मां के लिए संजीवनी बूटी का काम कर दें। पर फिर पड़ोस की भाभी ने बाकी को दिखाने की सलाह दी।
बाकी उत्तराखंड के गांव में एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे कुछ सिद्धियां प्राप्त होती हैं। वह किसी भी ऐसे व्यक्ति, जो किसी बात से परेशान है उनकी मदद करते हैं और उस परेशानी का पूरा ब्योरा भी उन्हें देते हैं। हम लोगो ने पता किया बाकी कहां मिलेगा। बहुत ढूंढने के बाद पता चला बाकी दूसरे गांव चमेली में रहता था।
अगले दिन सुबह होते ही मैं और पापा पहाड़ चढ़ते उतरते, गांव की गलियों-गदेरों को पार कर, जंगलों के बीच से गुजरते हुए आखिरकार बाकी के गांव पहुँच गए। हमने एक घास लेकर आती हुई औरत को बाक़ी के घर के बारे में पूछा तो उसने बताया की बाक़ी उसके घर के बगल में ही रहती थी। ऐसा लगा मानो हमें हमारी मंजिल तक पहुँचाने के लिए एक साथी मिल गया हो।

जब हम बाक़ी के घर पहुंचे वहां बाकी अपने काम में लगी हुई थी। हमने उन्हें अपनी समस्या बताई और उसे सुन उसने हमको इंतजार करने को कहा। वह अंदर जाकर कुछ चावल के दाने मंगाकर अपना काम करने लगी। जब मैंने दरवाजे के अंदर झांक कर देखा, तो पाया की उनका पूजा का कमरा बहुत ही देवी-देवताओं से भरा हुआ था। उन्हें चावल लेकर, देवी के सामने आंखें बंद कर कुछ अपने मन में बड़बड़ाते देख ऐसा लग रहा था मानो किसी से बात कर रहीं हो। थोड़ी ही देर में वह बाहर आइँ और बड़ ही नरम और धीमी आवाज में बोलीं, “इनको गदेरे के किनारे का भूत लग गया है”।

मैंने भूत-प्रेत से जुड़ी प्रचलित बातों के बारे में पहले भी सुन था। ऐसा भी कहा जाता था की दिन के समय कोई कुंवारी लड़की या नई दुल्हन जंगल घास लेने या पानी के स्रोत में जाती है, उनको भूत लग जाता है।
बाक़ी की बताने के बाद हम हैरान और परेशान थे। “भूत कैसे हो सकता है? हमने तो आज तक बस इसके बारे में सिर्फ़ सुना था”। दिमाग में बहुत सी चीजें चल रही थी - इस भूत को कैसे भगाऐगें? कैसे करेंगे? कितना बजट आएगा?
वह तो शुक्र हुआ की बाक़ी के घर से वापस आते समय दूसरे गांव की एक बूढ़ी दादी ने मां का हाल-चाल पूछा।हमने गंभीर होकर उनको बाकी की सारी बातें बताई और अपनी भूत भगाने वाली समस्या भी। दादी ने बताया की पास के ही गांव खंगलिया मे धामी रहता है और वह हमारी मदद कर देगा। हमने खुशी से उनकी बात में हामी भरते हुए उनको धन्यवाद दिया।
धामी, जो इंसान, देवता को बुलाने के मंत्र जानता है, मंत्रों के साथ थाली बजाता है, उसके कुछ ही पल में एक अलग सा माहौल होता है। वहाँ प्रेत आत्मा इंसानो के शरीर में प्रवेश करते हैं जो ढोल के साथ खूब नाचते हैं। बोला जाता है जिन लोगों के परिवार मैं अगर परिवार के किसी सदस्य मौत गिरने या किसी कारण से होती है, वह अपने परिवार में किसी सदस्य के शरीर में प्रवेश कर सब से मिलते हैं और उनको अपने अतीत के बारे में बताते हैं। उसके बाद परिवार वाले उनकी आत्मा की शांति के लिए हवन या किसी पशु की बलि देते हैं|

आते-आते शाम हो गई थी। मां वैसे ही अपने बिस्तर में पड़ी हुई थी। हमको बस रात गुजरने का इंतजार था। अगले ही दिन पापा ने खगलिया गांव जाकर धामी से बात की।
धामी ने शनिवार का दिन चुना और फिर हम सबको शनिवार का इंतजार लगा रहा। शनिवार आ ही गया। उस दिन सुबह धामी अपने बड़े से बैग में मंत्रों की किताब, धूप और बहुत सी चीजें लाया था। उसने हमको काला मुर्गा और गदेरे से छोटी-छोटी मछलियां और केकड़े लाने को कहा। दिन के समय हम यह सामग्री इकट्ठा करने लगे। गदेरे में छोटी मछलियां हाथ में ही नहीं आ रही थी। बड़ी मुश्किल से हमने आख़िरकार कुछ मछलियां पकड़ ही लीं। केकड़े से हम दोनों भाई -बहन डरते थे पर बड़ी हिम्मत जुटाकर हमने एक छोटा केकड़ा पकड़ लिया। अब शाम हो चुकी थी और हम दोनों भागते-भागते घर पहुँचे। घर पहुँच कर देखा की पापा भी मुर्गा ले आए थे और धामी एक कोने में कुछ सामान फैलाए बैठा था।

धामी ने अब पूजा शुरू की। सब जगह सन्नाटा छा गया था। मां को उनके सामने बिठा दिया गया। वह कई बार ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला कर मां के ऊपर चावल के दाने फेंकते और बोलते, “कहां से आया है? क्या चाहता है? भाग जा क्यों इसे परेशान किया है!” और हमारी तरफ इशारा कर के बोलते, “छोटे बच्चों को देख कैसे वो अपनी मां की हंसी भूल गए हैं”। हम कोने में बैठे-बैठे उनकी तरफ देख रोने लगे। फिर कुछ देर बाद माँ बेहोश हो गई। हम लोग घबरा गए थे। थोड़ी देर के बाद मां को होश आया और वह हमको देख रोने लगी। उसने हम को गले लगाया और ओर ज़ोर से रोने लगी। धामी ने मां के ऊपर से चावल के दाने फेंके और उसके बाद मां थोड़ा सही होने लगी। लगभग रात के तीन बज चुके थे। धामी के काले मुर्गे को गदेरे ले जाने के लिए कहने पर पापा और हमारे पड़ोसी धामी के साथ जाने के लिए तैयार हो गए। हम दोनों भाई-बहन मां के सर और पैरों की तरफ बैठ गए। कुछ सुबह के साढ़े पाँच का समय था जब पापा घर लौट आए।

मम्मी थोड़ा ठीक हो गई थी, खाना खाने लगी, बोलने लगी। हम सबके चेहरों पर खुशी आने लगी और हमने धामी को आभार व्यक्त किया। उन्होंने हम सब को ताबीज दिया और मां को इधर-उधर खाने को मना किया। पापा ने धामी को उनकी दक्षिणा दी और उनके घर छोड़कर आए।
हम सभी दोबारा चैन से रहने लगे। कई महीनों से न ही हमने खाना ढंग से खाया था और न ही ढंग से सोए थे। अगले दिन माँ ने हमें स्वादिष्ट खाना बना कर खिलाया और उस रात बहुत दिनों बाद मां भी चैन से सोई। पहले मैं बाकी धामी इन सब में विश्वास नहीं करती थी पर जब मैंने धामी और बाकी की मदद से अपनी मां के चेहरे पर मुस्कान लौटती देखी, उस समय मैं धामी और बाकी पर विश्वास करने के लिए मजबूर हो गई थी।

मेरी सोच में बदलाव आया की हॉस्पिटल के आलावा भी मेरी मां ठीक हो सकती है। मुझे बस मेरी मां ठीक चाहिए थी जिसके लिए मैं हर जगह, हर किसी देवी- देवता से अपनी मां की मुस्कान की प्रार्थना के लिए तैयार हूँ।
Meet the storyteller

