बाघ कथा: पुरुषवाडी
महाराष्ट्र के पुरुषवाडी गाँव के एक शिक्षक ने जंगली बाघों की पूजा करने की पीढ़ी-पुरानी प्रथा साझा की, जो आज भी जारी है
लेखक: महादु चिंदु कोंडार
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राम राम,
मैं पुरुषवाडीकर महादु चिंदु कोंडार, शिक्षा B.A / D.ED. तक। पेशे से शिक्षक हूँ, और वर्तमान में सांगली जिला परिषद स्कूल, तालुका शिराला में पढ़ा रहा हूँ। हम आपके लिए अपना इतिहास प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि हम ग्रामीण पर्यटन के लिए अधिक प्रेरणा और प्रचार प्राप्त कर सकें। और पर्यावरण, कृषि, शिक्षा से हमारे ग्रामीण जीवन में अबतक जो बदलाव हुए और मानव जीवन और मानव स्वास्थ्य कितने प्रभावित हुए यह आपके सामने रखना चाहते हैं।
यह इतिहास मुझे मेरे पिता चिंदु सोमा कोंडार के साथ मेरे दादा सोमा आनंद कोंडार एवं दादी द्वारकाबाई सोमा कोंडार ने बताया था।
तीन / चार पत्थर को सिन्दूर लगाये और एक लकड़ी के नक्काशीदार स्तंभ, जो कि पुरुषवाडी मुख्य गांव के पश्चिम में सड़क के किनारे ध्यान आकर्षित करते हैं। यह हमारे बाघ देवता का स्थान है। यह वह स्थान है जहाँ बाघ देवता एक बहुत बड़े पिंपरी वृक्ष के नीचे स्थित है। बाघ का स्थान आज भी है, लेकिन पेड़ अंततः नष्ट हो गया था। इस प्रकार के पिंपरी के पेड़ अभी भी पुरुषवाडी क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।
बाघ देवता का यहाँ एक स्थान है, लेकिन कोई मंदिर नहीं है। आसपास के लगभग सभी गाँवों में बाघ देवता का स्थान गाँव के द्वार पर पाया जाता है। नया पुरुषवाड़ी गाँव जब यहाँ बसा, तब से बाघ देवता का स्थान यहाँ स्थित है। फिर भी यह कम से कम दो पीढ़ियों पुराना है।
किंवदंती यह है कि, जब पुरुषवाडी गाँव यहाँ बसा, तब क्षेत्र में एक बाघ का आतंक था। हर हफ्ते या पखवाड़े किसी बाघ द्वारा किसी जानवर का शिकार किया जाता था। इसके लिए, हर एक घरसे ग्रामीणों ने एक एक मुर्गी की बलि देकर बाघ देवता से मन्नत माँगी कि हमें और हमारे जानवरोंकों बाघ से बाचाइये। ग्रामीणों को इसका एहसास होने लगा। ग्रामीण सुरक्षित महसूस करने लगे। तब से लेकर आज तक, वे जंगल में जाने से पहले और खेती की शुरुआत में मुर्गी की बलि देकर प्रार्थना करते हैं। बाद में यह परंपरा आम हो गई।
आज भी दिवाली के दौरान बाघबरस के दिन मुर्गियों की बलि देकर त्योहार मनाया जाता है। हमें और हमारे जानवरों को बाघों से बचाने की मन्नत माँगी जाती है। साथ ही इस दिन, चरवाहे नदी के पास घर से चावल ले जाकर खीर बनाई जाती है। और प्रसाद के रूप में सभी को वितरित की जाती है। एक परंपरा है कि एक बाघ पर आधारित एक नाटक सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में किया जाता है और जो व्यक्ति बाघ की भूमिका खेलता है, उसे नदी में डुबोया जाता है। शादी जैसे शुभ अवसर में खाने का पान, सुपारी, हल्दी, कुमकुम का बिडा बनाकर बाघ देवता के स्थान पर बिडा भरते हैं। इसी स्थान पर चावल के आटे और हल्दी से बने व्यंजन के उंडे बनाकर सगाई के वक्त की परंपरा भी है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि इससे अच्छे कामों में बाधा नहीं बनेगी।
मेरे माता-पिता कहते थे कि जब एक बाघ शिकार करने जाता था, तो बाघ देवता के सामने वाले खोडगा (पत्थरीला बना हुआ एक वनपीस कटोरे जैसा पत्थर) में अपना पैर रख देता था। बाघ देवता की अनुमति से ही बाघ का पैर खोडगा से बाहर आता था। अन्यथा, बाघ वहाँ फंस जाता और पूरी रात दहाड़ता रहता। इस शोर से ग्रामीण डर जाते और घर से बाहर नहीं निकलते।
जब मैं चार साल का था, मैंने देखा कि एक बाघ हमारे घर में बकरियों पर हमला कर रहा है। मुझे अच्छी तरह याद है कि यह कितना भयानक दृश्य था। हमारे परिवार के सदस्यों की चीख-पुकार से ग्रामीण इकट्ठा हो गए और बाघ वहाँ से भाग गया। दिनकर कोंडार हाल ही में दो साल पहले एक बाघ के हमले से बच गए थे। वह जल्दी से एक पेड़ पर चढ़कर सुरक्षित होने से बच गये। बाघों द्वारा इस तरह के हमले हमारे लिए कोई नई बात नहीं है। जंगल में चलते समय बाघ का दर्शन समय-समय पर होता है। हम आदिवासी बाघ को भगवान मानते हैं, उसकी पूजा करते हैं। शुभकार्य में उनका पहला सम्मान है। यह हमारी पुरानी परंपरा है। बाघ आम तौर पर इंसानों पर हमला नहीं करते। बाघ एक शांत, सुंदर जानवर है। यह हमारी दृढ़ राय है।
बाघों और अन्य वन्यजीवों के बारे में जागरूकता गाँव (B.M.C.बायोडाइवेर्सिटी मॅनेजमेंट कमिटी) जैवविविधता प्रबंधन समिति के माध्यम से उठाई गई है। गाँव की कुछ और कहानियाँ, परम्पराएँ, रीति-रिवाज B.M.C. रजिस्टर में दर्ज हैं। एक शिक्षक के रूप में मैं वर्तमान पीढ़ी को हमारी परंपराओं, मानदंडों, उसके इतिहास को बताता हूं जबकि नई पीढ़ी हमारे इतिहास को सुनने के लिए उत्सुक है। वे उस संबंध में सवाल पूछ रहे हैं। हम अपने रिवाजों और परंपराओं के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं। मुझे हमारे रीति-रिवाजों, परंपराओं, प्रकृति से प्यार है। मुझे उस पर गर्व भी है।
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