Architectural Heritage,  Heritage,  Hindi,  Ladakh

फोतोक्सर का निंग्पा गोंपा- युवाओं द्वारा उसके पुणर्स्थापाना की कहानी

यह फ़ोतोक्सर के युवा संगठन द्वारा उनके निंग्पा (पुराने) गोंपा की पुनर्स्थापना की एक प्रेरक कहानी है। सर्दियों की कड़कड़ाती ठंड और गर्मियों के लंबे दिनों में ग्रामीणों और अची एसोसिएशन के साथ काम करते हुए, उन्होंने अपने पूर्वजों के सम्मान में और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक विरासत के रूप में इस गोंपा को बहाल करने में 4 साल लगाए।

कहानीकार : ताशी डोलमा , हिमल प्रकृति फ़ेलो
फ़ोतोक्सर, लेह ,लद्दाख

Read this story in English

फोटोः सर्दियों में दालथोंग खा पर स्थित निंग्पा गोंपा (पुराना गोंपा)

फोतोक्सर के दलतोंग खा क्षेत्र में 13600 फुट पर बनाया गया हमारा निंग्पा गोंपा (पुराना बौद्ध मठ) लेह जिले के खाल्सी ब्लॉक में स्थित है जो लद्दाख में पड़ता है। फोतोक्सर लेह से लगभग 165 किमी दूर है और यहां आने के लिए अल्ची, खाल्सी, वान्ला से होते हुए 15,620 फीट के सिल-सिल ला (दर्रा) को पार करके नई सड़क से अब पहुँचा जा सकता है। हमारे गांव (जोकि 13003 फुट पर स्थित है) के ऊपर पहाड़ की चोटी पर स्थित इस खूबसूरत छोटे निंग्पा गोंपा या पुराने गोंपा के चारों तरफ अलग-अलग आकार के सुंदर चट्टानें हैं। उनमें से एक का नाम गॉम्बो चरोक दोंग (पक्षी के सिर जैसा आकार) है जो गोंपा के सामने है।

फोटोः दालथोंग खा पर स्थित निंग्पा गोंपा 
फोटोः निंग्पा गोंपा

फोतोक्सर में निंग्पा गोंपा (पुराना गोंपा) 17वीं शताब्दी में राजा पुंचोक नामगेल् के समय में लेह कलोन (राजा के सलाहकार) सोनम तारगिस और स्टॉक कलोन कुंनछप ताशी के साथ बनाया गया था। उस समय प्रमुख कोमनिर (लामा) लोबोन (प्रमुख गुरु) रोंगदो छेवंग थे जिन्होंने सुझाव दिया कि यहां एक छोटा गोंपा बनाया जाना है और तदनुसार राजा और सभी ग्रामीणों ने उनके अनुरोध का पालन किया। इसे बनाने में निर्माणकर्ता ड्रुवांग कोंचोक छोज़वांग लुंडुप के साथ गांव के लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ी। चोमो (बौद्ध भिक्षुनी) ताशी पलज़ोम और चोमो दोरजे पलज़ोम और ताशी ग्यल्सन, त्सिरिंग गाना, सोनम रिंन्चेंन, ग्यलसन् ताशी, ताशी सेरिंग और सेरिंग लुंडुप जैसे ग्रामीणों ने इसे बनाने में बहुत मेहनत की। यह निंग्पा गोंपा हमारे गांव के काफी ऊपर है। निंग्पा गोंपा तक पैदल चलकर पहुँचना कठिन था क्योंकि वहां तक कोई सड़क नहीं थी।

फोटोः निंग्पा गोंपा  के रास्ते में पानी का झरना जो सर्दियों में जम जाता है।

सर्दियों के दौरान निंग्पा गोंपा तक जा पाना विशेष रूप से कठिन था। निंग्पा गोंपा के रास्ते में चट्टानों के ऊपर से झरने के पानी की एक धारा बहती है। सर्दियों में यह जम जाती है और लोगों को वहां तक ​​पहुंचने में काफी मुश्किल होती है।

फोटो: फोतोक्सर के ग्रामीणों द्वारा किया गया यूम  नृत्य 

उन दिनों वहां साल में एक बार यूम नामक उत्सव आयोजित किया जाता था। सभी ग्रामीणों के साथ माताएँ भी अपने बच्चों को टोकरियों में लेकर पहाड़ की चढ़ाई पूरी कर के उन्हें निंग्पा गोंपा ले जातीं। पारंपरिक नृत्यों के साथ चार-पांच दिनों तक प्रार्थनाएं चलती जिसका हर कोई आनंद उठता।

फोटोः सर्दियों में निंग्पा गोंपा

चूंकि वहां केवल पगडंडी थी और रास्ता साफ नहीं था इसलिए ग्रामीणों और कोमनिर (लामा) को प्रार्थना और पूजा करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था। निंग्पा गोंपा में छोत्में (दीपक) जलाने और दर्शन करने के लिए जाना बहुत मुश्किल था। सर्दियों में, जब बर्फबारी होती थी और रास्ता बंद हो जाता था तो बर्फ को साफ करना पड़ता था और कोमनिर को हाथ पैर ठंड से जम जाते थे।

फोटो: यूम  समारोह के दौरान फोतोक्सर से सोनम पलजोर

एक बार एक लामा निंग्पा गोंपा  के रास्ते में गिर गया। चूंकि कोमनिर  को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था, उन्होंने महामहिम स्केब्जे तोक्दान रिन्पोचे से अनुरोध किया कि यह गोंपा के लिए अच्छी जगह नहीं है और खासकर सर्दियों में पहाड़ की चोटी पर अपना कर्तव्य निभाने में उनके लिए एक बड़ी समस्या थी। महामहिम तोगदान रिन्पोचे ने कोमनिर  के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। 

फोटोः नया गोंपा जिसमें निंग्पा गोंपा  से लाए गए स्तूपा स्थापित किए गए
फोटोः फोतोक्सर के निवासियों द्वारा किया गया सांस्कृतिक समारोह

यूस्लो (1974) में सभी मूर्तियाँ, स्तूप और हस्तनिर्मित थंखा (पेंटिंग), सभी लकड़ियाँ और ईंटें नीचे हमारे गाँव फोतोक्सर में लाए गये। ग्रामीणों को नया गोंपा बनाने, उसमें सभी स्तूपों और मूर्तियों को हमारे गाँव के ठीक ऊपर शक्मा रिंगमो में उसके नए स्थान पर रखने में दो से तीन साल लग गए। इससे कोमनिर के लिए नए गोंपा में प्रार्थना करना आसान हो गया। ग्रामीणों ने कोमनिर के अनुरोध को स्वीकार करने के लिए महामहिम तोगदान रिन्पोचे जो लद्दाख के एक महान लामा हैं, को धन्यवाद देने के लिए एक सांस्कृतिक स्वागत समारोह आयोजित किया।

फोटोः निंग्पा गोंपा  के दीवारों में दरारें 
फोटोः निंग्पा गोंपा  का वर्षा के पानी से क्षतिग्रस्त सिक्पा का नक्शा (दीवारों पर पेंटिंग)
फोटोः निंग्पा गोंपा  का क्षतिग्रस्त अन्दर का हिस्सा

लेकिन इन बीते 48-49 वर्षों में, ग्रामीणों और कोमनिर  की उपेक्षा के कारण हमारा निंग्पा गोंपा  धीरे-धीरे जीर्ण-क्षीर्ण हालत में पहुँच गया। खिड़कियाँ और दरवाज़े, लकड़ियाँ, ईंटें, खंभे और अंदर की दीवार की पेंटिंग और बाहर की दीवारें बुरी तरह प्रभावित हुईं। बर्फबारी और बारिश का पानी छत के माध्यम से गोंपा के अन्दर पहुँच जाता था जिससे दीवार पर बने चित्रों के साथ-साथ बाहरी दीवारों को भी बहुत नुकसान पहुंचा। 

फोटो- थुंगकर लोथुन त्सोकपा (फोटोक्सर  के युवा एसोसिएशन) और अची  एसोसिएशन के सदस्य
  1. 2019 में फोटोकसर के थुंगकर लोथुन त्सोग्स्पा (युवाओं का संगठन) ने हमारे निंग्पा गोंपा  का दौरा किया और पाया कि अंदर जाने का कोई रास्ता ही नहीं रह गया था क्योंकि प्रवेश मिट्टी और चट्टानों से भरा हुआ था और इमारत खतरनाक हालत में था। हमने पुराने गोंपा के बारे में चर्चा की और निर्णय लिया कि यह हमारी विरासत है और हमारी आस्था, हमारी जीवनशैली का उदाहरण है और हमारे बच्चों का भविष्य है। अगर हम एकजुट होकर इसका पुणर्स्थापना करें तो हम उसे बचाने में सफल हो सकते हैं। जून 2019 में हम फोतोक्सर के युवा संगठन ने इसकी मरम्मत और नवीनीकरण का काम शुरू करने का फैसला लिया। उसके बाद, हमारे थुंगकर लोथुन त्सोग्स्पा और आची  एसोसिएशन (लेह के नवीकरण कलाकार) हमारे निंग्पा गोंपा  के पुनर्निर्माण और नवीनीकरण के लिए एक साथ आए। 
फोटोः पक्बू (सिमेंट ब्लॉक) के लिए पत्थर इक्कठा करते हुए
फोटोः कार्यस्थल तक पक्बू (सिमेंट ब्लॉक) को ले जाने की तैयारी
  1. हमने सबसे पहले पक्बू (सीमेंट ब्लॉक) बनाने के लिए पत्थर एकत्र किए। हम पहाड़ की चोटी से पाइपों से पानी लेकर आये। हम ने अपने गांव से पक्बू को पहाड़ की चोटी तक ले जाने के लिए बुँग्बू (गधों) का इस्तेमाल किया जहां निंग्पा गोंपा का नवीनीकरण किया जा रहा था। 
फोटोः निंग्पा गोंपा  में काम करते हुए आची  एसोसिएशन के कलाकार
फोटोः निंग्पा गोंपा  में सिक्पा का नक्शा (दीवारों पर पेंटिंग) की बहाली
फोटोः निंग्पा गोंपा  में काम करते हुए आची  एसोसिएशन के कलाकार
  1. अंदर की दीवार पर सिक्पा का नक्शा (पेंटिंग) को आची एसोसिएशन के कारीगरों द्वारा फिर से बहाल किया गया, जबकि हमने बाहर का काम किया। हमने बड़ी कठिनाइयों को सहते हुए, अपने ग्रामीणों की मदद से पुराने गोंपा का पुनर्निर्माण किया। फोतोक्सर के युवाओं ने दिन-रात मेहनत की। 
फोटोः युवा श्रमिका मुख्य मिस्त्री का सहयोग करते हुए
फोटोः निंग्पा गोंपा  के दीवारों व छत की मरम्मत करते हुए
फोटोः कार्यस्थल पर गांव के श्रमिक
फोटोः निंग्पा गोंपा  पर चल रहा काम

मुख्य राजमिस्त्री स्थानीय गांव वाला था और उसके साथ 4 से 5 ग्रामीण बारी-बारी से काम करने आते थे। हम यह सोच कर आश्चर्यचकित थे कि पुराने समय में लोगों को इस निंग्पागोंपाको बनाने में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा! 

फोटोः कार्यस्थल पर गांव के लोग श्रमदान करते हुए
फोटोः कार्यस्थल पर कहानीकार व उनकी मित्र श्रमदान करते हुए
फोटोः निंग्पा गोंपा  की दीवारों को रंगते हुए
फोटोः आराम करते हुए गांव के लोग

हमारे थुंगकर लोथुन त्सोग्स्पा के 22 सदस्यों ने कड़ी मेहनत की और ग्रामीणों ने हमारी बहुत मदद की, क्योंकि उनकी मदद के बिना हमारे लिए काम पूरा करना संभव न होता।

फोटो: निंग्पा गोंपा  बहाली स्थल पर श्रमिकों के सर्दी के मौसम के भोजन के लिए, सब्जियां सुखाते यूथ एसोसिएशन के सदस्य

हमें निंग्पा गोंपा पर श्रमदान करने वाले लोगों को भोजन भी खिलाना पड़ता था। हम गाँव में भोजन तैयार करते थे और उसे टोकरियों में भरकर ऊपर वहाँ तक ले जाते थे जहाँ काम किया जा रहा था। फोतोक्सर के ग्रामीणों ने निंग्पा गोंपा के पुणर्निर्माण पर काम कर रहे लोगों के लिए चावल और सब्जियां दान कीं। हम युवाओं और श्रमिकों के लिए रात का खाना बनाते थे और सारा खाना खुद उठाकर ऊपर ले जाते थे। यह इतना भारी था कि हमें ऊपर तक पहुँचने में बहुत कठिनाई होती थी। 

फोटोः ग्रामीणों द्वारा निंग्पा गोंपा  तक बनाया गया पगडंडी और बुँग्बू (गधों) द्वारा सामान की ढोलाई

फ़ोतोक्सर के युवाओं ने निंग्पा गोंपा तक एक अच्छी पगडंडी बना दी। हमने नवीकरण स्थल तक लकड़ियाँ, खंभे, खिड़कियाँ और दरवाजे खुद उठाकर लाए और बुँग्बू (गधों) द्वारा ईंटें या मिट्टी लाई गई।

फोटोः निंग्पा गोंपा  की पुणर्स्थापना का कार्य दिन-रात चलते हुए

जब हमारे गाँव में कटाई का समय होता था, तब हम रात में 3 बजे से अगले दिन दोपहर 2 बजे तक काम करते थे। रात में रोशनी नहीं थी इसलिए हमने रोशनी करने के लिए जनरेटर का इस्तेमाल किया। दिन-रात काम करके हमने लगभग जून 2023 में नवीनीकरण पूरा कर लिया।

फोटोः कोरियाई के लामा स्टैनज़िन चोस्कीब द्वारा निंग्पा गोंपा  में स्थापित स्तूप 
 
  1. निंग्पा गोंपा के नवीकरण पूरा होने के बाद कोरियाई के लामा स्टैनज़िन चोस्कीब ने वहां एक स्तूप की स्थापना को प्रायोजित किया। हमारे ग्रामीणों ने हमें दिल से धन्यवाद दिया क्योंकि वे खुश थे कि वे अब फिर से अपने निंग्पा गोंपा का दर्शन कर सकते हैं।
निंग्पा गोंपा की पुणर्स्थापना का जश्न समारोह मनाते फोतोक्सर के ग्रामीण

Meet the storyteller

Tashi Dolma
+ posts

Tashi Dolma, at 28 years of age, is a dynamic force in her village Fotoksar. As a core member of the Youth Association, Tashi played a vital role in the restoration of the Ningpa or the old Gonpa as a tribute to their ancestors. Today, she is motivated to stimulate responsible tourism in her village by tapping into the rich heritage of the region. She enjoys singing and dancing, and is entrusted with the task of nurturing young minds in the local centre. Tashi wants to continue to live in her village, to garden and work in her fields because of a deep love for the landscape she calls home.

28 साल की ताशी डोल्मा अपने गांव फ़ोटोक्सर में एक गतिशील शक्ति हैं। यूथ एसोसिएशन के मुख्य सदस्य के रूप में, ताशी ने अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए निंग्पा या पुराने गोंपा के जीर्णोद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज वह क्षेत्र की समृद्ध विरासत का लाभ उठाकर अपने गांव में जिम्मेदार पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरित है। ताशी को संगीत और नृत्य करना बहुत पसंद है और साथ ही वे अपने गाँव के स्थानीय केंद्र में बच्चों के पोषण का काम करती हैं। ताशी अपने गाँव में ही रहना, बागवानी करना और अपने खेतों में काम करना जारी रखना चाहती है क्योंकि उन्हें इस भूदृश्य से गहरा प्रेम है जिसे वह अपना घर कहती है।

Voices of Rural India
Website | + posts

Voices of Rural India is a not-for-profit digital initiative that took birth during the pandemic lockdown of 2020 to host curated stories by rural storytellers, in their own voices. With nearly 80 stories from 11 states of India, this platform facilitates storytellers to leverage digital technology and relate their stories through the written word, photo and video stories.

ग्रामीण भारत की आवाज़ें एक नॉट-फ़ॉर-प्रॉफ़िट डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म है जो 2020 के महामारी लॉकडाउन के दौरान शुरू हुई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीण कहानीकारों द्वारा उनकी अपनी आवाज़ में कहानियों को प्रस्तुत करना है। भारत के 11 राज्यों की लगभग 80  कहानियों के साथ, यह मंच कहानीकारों को डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर और लिखित शब्द, फ़ोटो और वीडियो कहानियों के माध्यम से अपनी कहानियाँ बताने में सक्रीय रूप से सहयोग देता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *