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पहाड़ों से भी बड़े सपने

लेखिका – सविता कंसवाल

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मेरा नाम सविता कंसवाल है। मैं उत्तरकाशी जिले के एक बहुत ही दूरस्त गांव लोंथरू की रहने वाली हूं ।  मेरे पिताजी का नाम श्री राधेश्याम कंसवाल है जो कि कृषक है । मेरी माताजी का नाम श्रीमति कमलेश्वरी देवी है जो कि ग्रहणी है। मेरी 3 बहने है और तीनो की शादी  हो रखी है । मेरा जन्म एक बहुत ही साधारण परिवार में हुआ ।  मैने  बचपन से ही बहुत ही छोटी छोटी चीजों के लिए  संघर्ष किया।  

सविता अपने पिता श्री राधेश्याम कंसवाल और माँ श्रीमति कमलेश्वरी देवी के साथ. फोटो: मनोरमा सेमवाल

जब मैं 6 कक्षा में पहुंची तो मेरा विधालय मेरे घर से डेड किलोमीटर दूर था और पूरा जंगल का रास्ता था। और उस समय मेरी उम्र भी बहुत कम थी। जूनियर हाईस्कूल कोटधार से मैने  आठवीं तक की पढ़ाई पूरी की और उसके बाद नवीं कक्षा में मैने राजकीय इण्टर कॉलेज मनेरी में दाखिला लिया। जो कि मेरे घर से 4 किलोमीटर दूर था मुझे हर दिन चार किलो मीटर आना और चार किलोमीटर जाना करना पड़ता था। पूरा जंगल का रास्ता था और खड़ी चढ़ाई थी। मेरी सभी सहेली अच्छे घर से थी तो सभी लोगों ने मनेरी में किराए पर कमरे ले लिए थे लेकिन मेरी घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण मुझे घर से ही आना जाना पड़ता था। में अकेले ही घर से आया जाया करती थी।

में ग्यारवी कक्षा में पढ़ रही थी तभी हमारे स्कूल में एक फार्म आया जो कि उत्तराखण्ड सरकार  द्वारा 10 दिवसीय ऐडवेंचर फाउंडेशन कोर्स था और मैने भी वह फॉर्म भर दिया। मुझे उस टाइम एडवेंचर कोर्स के बारे में ज़्यादा जानकारी तो नहीं थी, लेकिन मुझे कैंप करने का बहुत शौक था जैसे NCC और NSS में करते हैं। मेरी किसी particular खेल में दिलचस्पी नहीं थी लेकिन मुझे बचपन से स्पोर्ट्स में काफी दिलचस्पी थी। एडवेंचर कोर्स में मैंने कोर्सेस के बारे में तो सीखा ही साथ ही साथ बहुत सारी छोटी छोटी चीज़ें भी सीखी जैसे अनुशासन, एकता और एडवेंचर कोर्स करने के बाद मेरे अंदर एक अलग ही level का confidence आया। इसी कोर्स के माध्यम से मुझे पर्वतारोहण के बारे मैं पता चला। बस फिर मन में एक ही सपना था – बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स करने का। लेकिन फिर से घर की स्थिति बहुत ही खराब थी और कोर्स की फीस 5000 रुपए थी। लेकिन घर में तो फीस के लिए पैसे ही नही थे।

2012 में जब मेरा 12 पास हुवा तो मुझे स्कूल से संचायिका मिली जिसकी वजह से 2013 मैं अपना बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स पूरा कर पाई। मैंने बेसिक माउंटेनियरिंग का कोर्स नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग, उत्तरकाशी से किया और कोर्स के वक़्त का हर पल मेरे लिए ख़ास है। बहुत सारे पल हैं जो अभी भी याद आते हैं। ख़ास कर रात को जब snowfall होता था तो रात भर टेंट झाड़ना पड़ता था।

नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग में माउंटेनियरिंग का प्रशिक्षण लेते हुए. फोटो: अनिल धनकर

दुबारा एडवांस माउंटनीयरिंग  कोर्स करना था दुबारा फीस की समस्या सामने आई। उसके बाद 2013में उत्तराखंड में जो आपदा आई थी उस समय कुछ संस्था लोगों की मदत करने को आगे आई और  आपदा प्रभावित क्षेत्रो से कुछ बच्चे चुने गए  जिन्हें देहरादून लाकर फ्री मे ट्रेनिंग दी गई जिसमे एक में भी थी।

2महीने का कोर्स हमसे करवाया गया और उसके बाद हमें प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में नौकरी दी गई ।मैने पहली नौकरी Cafe Coffee Day में ६००० रुपये महीने की नोकरी की 2साल नोकरी करने के बाद मै दुबारा एडवांस कोर्स करने के लिए NIM आई। एडवांस कोर्स में हमारे साथ की एक लड़की crevasse में गिर गई थी। वह किस्सा माउंटेन्स में बहुत ज़्यादा याद आता है।

एडवांस कोर्स के बाद मैने मैथर्ड ऑफ इंस्ट्रोक्शन कोर्स सर्च और रेस्क्यू कोर्स पूरा करके 2016से नेहरू प्रवतारोहण संस्थान मैं अथिति प्रशिक्षक  के रूप में काम कर रही हूँ। एडवांस कोर्स में हमारे साथ की एक लड़की crevasse में गिर गई थी। वह किस्सा माउंटेन्स में बहुत ज़्यादा याद आता है।

सविता को एक अभियान के दौरान एक लड़की के दरार में गिरने की घटना सुनाते हुए सुनें

माउंटेनियरिंग के वक़्त सबसे ज़रूरी चीज़ जो सीखने को मिलती है वह है अनुशासन। उंटेनियरिंग कोर्सेज २८ दिन के होते हैं। उसमें rock craft, ice craft, snow craft के तीन भागों में divide किया जाता है और तीनो भागों की ट्रेनिंग होती है। ट्रेनिंग में बताया जाता है की किस तरीके से rock, ice और snow पर चढ़ना है और उतरना है। और भी बहुत सारी एडवांस techniques होती हैं जिनके बारे में कोर्स में बताया जाता है। कोर्सेज के दौरान हम सुबह ६:०० बजे उठते थे।सुबह के व्यायाम के बाद नाश्ता होता था और उसके बाद ट्रेनिंग। दोपहर १ बजे लंच, उसके बाद एक घंटे के विश्राम के बाद दोबारा ५ बजे तक physical training और उसके बाद indoor की क्लास होती थी। बीचमें ४ बजे के करीब हमारा game time होता था और उसके बाद ८ बजे dinner और ९:३० बजे बत्तियाँ बंद की जाती थीं। यही दिनचर्या पहाड़ों में भी होती थी, सिर्फ पहाड़ों में ट्रेनिंग अलग किस्म की होती थी।

नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग में प्रशिक्षण लेते हुए. फोटो: नवाब मोहजम खान

मेरा पहला  सफल अभियान द्रौपदी का डांडा था जो कि मेने 2018 में NIM के गर्ल्स कोर्स में किया। इस चोटी पर मैं इससे पहले भी एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स के दौरान summit का एक प्रयत्न कर चुकी थी जो मौसम खराब होने की वजह से सफल नहीं हुआ था। लेकिन जब मैं वापस बतौर instructor इस चोटी पर गई तब मुझे चोटी के बारे में सब पहले से पता था जो मेरे लिए लाभदायक रहा। फिर भी बतौर instructor मुझे अलग चुनौतियाँ आई और route open करना, rope fix करना, ये सारी ज़िम्मेदारियाँ भी मेरे पे थी।

द्रौपदी का डांडा – सविता ने सफलतापूर्वक summit किये हुए पर्वतोंमें से एक. फोटो: Amar on Wikimedia Commons

मैं अब नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग, उत्तरकाशी में इंस्ट्रक्टर हूँ। यहाँ साल में ५ batches बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स की हैं, ३ batches एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स की हैं, १ batch सर्च एंड रेस्क्यू का और १ batch मेथड ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का है। इसके अलावा इंस्टिट्यूट में NRDF के, IMA के, उत्तराखंड पुलिस के, उत्तरप्रदेश पुलिस के और भी स्पेशल कोर्सेज हैं।

NIM में माउंटेनियरिंग कोर्स करने वालों को प्रशिक्षण देते हुए. फोटो: मारुती

मेरी सबसे बड़ी अचीवमेंट माउन्ट ल्होट्से है जो कि दुनियां की चौथी सबसे ऊंची चोटी है जिसकी ऊंचाई 8516m है और यह चोटी नेपाल हिमालय में पड़ती है । मैं भारत की दूसरी और उत्तराखंड की पहली महिला हूं जिसने ये पर्वत को चढ़ा है।  जो मेरे लिए एक बहुत बड़ी अचीवमेंट है। अब तक मैंने ९ एक्सपेडिशन्स पूरे किये हैं जिनमें ४०००-८००० मीटर की ऊँचाई तक के पर्वत हैं। हर चोटी की अपनी अलग value है, अपनी अलग अलग चुनौतियाँ हैं। माउंट ल्होत्से मेरेलिए सबसे ज़्यादा कठिन रहा है।

सविता को अभियानों के दौरान अपने अनुभवों के बारे में बात करते हुए सुनें

माउंट ल्होत्से summit. फोटो: शेरपा अंगपस्ता

माउंटेनियरिंग मेरा passion है, मेरा profession है। मुझे पहाड़ो में एक सुकून सा मिलता है। मुझे mountains से प्यार है इसीलिए मैं माउंटेनियरिंग करती हूँ। मैं जिस माहौल में रहती थी, शुरू में मेरे घरवालों ने और मेरी गांव के लोगोंने मुझे रोकने की बहुत कोशिश की। कहा कि माउंटेनियरिंग लड़कियों के लिए है ही नहीं। लेकिन मुझे माउंटेनियरिंग करनी थी इसलिए मैं अपनों से लड के अपने गाँव वालों से लड के माउंटेनियरिंग की। लेकिन आज मुझे हर कोई सपोर्ट करता है।

मैं अगले साल माउंट एवरेस्ट जाना चाहती हूँ और उसके लिए अभी वित्तीय सहायता जुटा रही हूँ। मेरा दूसरा target है दुनिया की १४ उच्चतम चोटियों पर चढ़ना। मेरा तीसरा target है की मैं अपने क्षेत्र में tourism को लेकर कुछ रोज़गार लाना चाहती हूँ और अपने क्षेत्र को दुनिया के tourism के नक़्शे पर लाना चाहती हूँ और विशेषकर यहाँ की ज़रूरतमंद लड़कियों की मदद करना चाहती हूँ।

जो लोग मॉउंटेनीर बनना चाहते हैं उनको मैं बस इतना कहना चाहती हूँ कि अगर आप माउंटेनियरिंग करते हैं तो सबसे पहले आप माउंटेन्स का आदर करें। अगर आप माउंटेन्स की respect करेंगे तो आपको सफलता ज़रूर मिलेगी। इसके अलावा माउंटेन्स में कभी भी जोखिम नहीं लेना और हमेशा माउंटेन्स में अपनी सुरक्षा को सबसे ज़्यादा महत्त्व देना।

 * Cover Photo: Uwe Gille, CC BY-SA 3.0, via Wikimedia Commons

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Meet the storyteller

Savita Kanswal
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Savita belongs to Lonthru village in the Uttarkashi region of Uttarakhand. She is a passionate mountaineer and a guest instructor at Nehru Institute of Mountaineering in Uttarkashi. She is one of the four daughters of Shri Radhesham Kanswal, a farmer, and Shrimati Kamleshwari Devi, a homemaker. Savita is the first woman from Uttarakhand and second woman from India to have summited Mount Lhotse, the fourth highest peak in the world. She dreams to summit Mount Everest and the 14 highest peaks in the world.

Green People
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Green People is an organization working towards reverse migration of marginalized farmers via two channels named "Bakri Chhap" and "The Hideouts". "Bakri Chhap" is providing market linkage to indigenous farm produce from the community the organization works with while "The Hideouts" is promoting farm retreats, homestays and reviving abandoned villages by leveraging their tourism potential.

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