नागस : किन्नौर में सदियों पुरानी विश्वास प्रणाली के माध्यम से जल का संरक्षण
यह कहानी किन्नौर के वर्षा छाया हिमालय क्षेत्र में नागस जैसी विश्वास प्रणालियों से जल संरक्षण के तरीकों का एक झलक प्रदान करती है। लेखिका अपने पूर्वजों के सामूहिक ज्ञान के महत्त्व को उजागर करते हुए बताती है कि कैसे उनकी जीवन में अंतर्निहित प्रकृति से सम्बन्धित मान्यताएँ जाल को महत्व देने में सक्षम बनाती है।
कहानीकर्ता : प्रमिति नेगी, हिमल प्रकृति फेलो
रिकांग पिओ, जिला किन्नौर, हिमाचल प्रदेश
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“आह! आह! आह! वह अपनी आँखों को छूते हुए अचानक दर्द से चिल्लाने लगते,” मेरी नानी ने अपने ससुर के बारे बताते हुए कहा।
वह किसी बीमारी से पीड़ित नहीं थे। बीमारी होती भी तो कभी किसी डॉक्टर द्वारा चेक-उप नहीं करवाया गया था। लेकिन घर वालों का मानना था उनके अचानक होने वाले दर्द का संबंध उनके ज़मीन पर बहने वाले पवित्र पानी के स्त्रोत नागस से था।
नागस क्या है और उस से जुड़े विश्वास प्रणाली को समझने के लिए मैं अपने नानाजी के परिवार में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक रूप से चली आ रही एक छोटी सी घटना का उदाहरण देना चाहूंगी। हमारे पूर्वज जिस भूमि पर रहते थे, वहां एक भूमिगत जल का स्रोत था। हिमाचल के कई भागों में इसे चश्मे के पानी के रूप में जाना जाता है। किन्नौर में इसे नागस कहा जाता है। नागस का शाब्दिक अनुवाद ‘साँप’ होता है। हमारी बोली में वास्तविक साँप के लिए सापास शब्द का प्रयोग किया जाता है। नागस एक पवित्र और रहस्यमय साँप है जिसे अक्सर चश्मे का पानी प्रदान करने का श्रेय दिया जाता है।
नानाजी का परिवार पीढ़ियों से अपने गांव खादुर और अपनी ज़मीन पर रहते हैं। वह बतातें हैं कि अतीत में किसी समय, एक व्यापक भूस्खलन के चलते उनके पूर्वजों को उस भूमि को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जहाँ उनके पुरखे पहले रहा करते थे। वे गाँव के भीतर एक नए स्थान पर चले गए। जब वे स्थानांतरित हुए तो एक अजीब लेकिन रोचक घटना घटी। जो नागस उनकी पुरानी भूमि पर स्थित थी और भूस्खलन के कारण गायब हो गई थी, वो अब उनके नए घर के खेत खलियानों में से बहने लगी। गौर करने की बात है कि ये दोनों बेहद दूरी पर स्थित हैं। उनके पूर्वज हर सुबह नागस को शुर (जूनिपर- जो धूप के रूप में उपयोग किया जाता है) जलाकर प्रार्थना करते थे। उनके परिवार ने अपनी नई संपत्ति पर भी पानी के आसपास के क्षेत्र को स्वच्छ और उसका प्राकृतिक माहौल बनाए रखा और परम्परा जारी रखा।
“तो तुम्हारे ससुर की नज़र में क्या ख़राबी थी?” मैंने अपनी नानी से पूछा।
“वह नागस के पास अपने खेती के औजारों के साथ कुछ कर रहे थे और हो सकता है अनजाने में उनके द्वारा नागस की आँखें घायल हो गई हो। उसके बाद, उन्हें भी कभी-कभी अपनी आँखों में किसी नुकीली चीज़ के चुभने का अहसास होता था और दर्द से वह अचानक चिल्ला उठते थे,” नानी ने उत्तर दिया।
नागस से जुड़ा एक दूसरा किस्सा जो मैने सुना है- वह एक प्रसिद्ध लामा (बुद्धिस्म के गुरु) का है। कूनो गांव के पास एक गुफा है जिसे सोमंग के नाम से जाना जाता है। इस गुफा में बैठ एक लामा ने कई वर्षो तक ध्यान किया और वह लामा सोमंग टुल्कु के नाम से प्रसिद्ध हुए (टुल्कु एक उपाधि है )। आज से 10 से 15 साल पहले यह निर्णय लिया गया कि वहां एक गोंपा यानि बौद्ध मठ बनाया जाए। सोमांग टुल्कु निर्माण की देखरेख कर रहे थे और गुफा के नीचे स्थित चरागाहों पर तंबू बनाकर निर्माण कार्य कर रहे गांव वालों के साथ रहने लगे । उनके अस्थायी निवास के पास एक नागस बहता था। कुछ दिनों बाद सोमांग टुल्कु ने लोगों को उस स्थान से दूर चले जाने की सलाह दी जिसे उन्होंने माना।
“यह शिविर लगाने के लिए अच्छी जगह नहीं है। यहां का चश्मा रोक नागस हैं। मुझे हर रात बुरे सपने आते हैं,” उन्होंने चेतावनी दी थी।
माना जाता है कि भूमिगत जल की उत्पत्ति दो प्रकार के रहस्यमय नागस द्वारा होती है। रोक नागस और ठोग नागस । रोक नागास या काला साँप एक नरभक्षी साँप है। यदि आप इसकी पूजा करेंगे तो आपको समृद्धि प्राप्त होगी। लेकिन रोक नागस बीमारियों और असामयिक मृत्यु का कारण भी बन सकता है। ठोग नागस का मतलब सफेद सांप है लेकिन यह किसी ऐसे सांप को भी संदर्भित कर सकता है जो काला नहीं है। ठोग नागस अपेक्षाकृत शांत स्वभाव का होता है।
यदि जलस्रोत गन्दा किया जाता है या नागस का प्राकृतिक वातावरण बिगाड़ा जाता है तो नाग क्रोधित हो जाते हैं। यदि यह काला नागस है तो यह आपको नुकसान पहुंचा सकता है। यदि यह सफ़ेद नाग है तो पानी सूख जायेगा। यहां तक कि मूर्तियाँ, फूल, पवित्र धागे, मोमबत्तियाँ और दीपक जैसे आस्था के विशिष्ट प्रतीक भी नागाओं के पास नहीं पाए जाते क्योंकि वे पानी को प्रदूषित कर सकते हैं। बात स्पष्ट है – पानी का उपयोग करें लेकिन इसे साफ रखें।
मेरे नानाजी का गाँव खादुरा हिमालय के ठंडे और शुष्क क्षेत्र में स्थित है और कम वर्षा के कारण अक्सर किन्नौर के इन गांव में पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। जब भी मैं उनसे मिलने जाती हूं तो नागस का ताजा और मीठा पानी अवश्य पीती हूँ।
गर्मी के दिनों में, नागस का पानी ठंडा और ताज़ा होगा। सर्दियों के दौरान, जैसे ही तापमान शून्य से नीचे चला जाएगा, कई जल स्रोत जम जाएंगे लेकिन नागस साल भर पानी देता है।
किन्नौर में विभिन्न घाटियाँ सतलुज और उसकी सहायक नदियों के किनारे स्थित हैं। सतलुज और बसपा के निचले क्षेत्रों में स्थित घाटियों में अच्छी मात्रा में वर्षा होती है। ऊपरी क्षेत्र एक वर्षा-छाया क्षेत्र है जहां मौसम पड़ोसी तिब्बत और स्पीति के समान है। पूरे किन्नौर में आजीविका कृषि पर निर्भर है। जीवित रहने के लिए पेयजल स्रोत, सिंचाई चैनल और पशुओं के लिए पानी आवश्यक है। यह समझ में आता है कि ऐसी मान्यताएं और अनुष्ठान जल और जल निकायों को अनमोल रूप से महत्व देते हैं।
नागस से संबंधित एक दिलचस्प घटना मुझे एक मित्र ने सुनाई थी। कुछ साल पहले उसे एक मधुमक्खी ने डंक मार लिया था। मेरी दोस्त को तब पता चला कि उसे मधुमक्खी के डंक से एलर्जी है। किसी ने लोक उपचार के रूप में भांग के पौधों को पीसकर सूजन वाले स्थान पर लेप लगाने का सुझाव दिया। दुर्भाग्य से, कुछ दिन पहले ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से एक “सफाई” अभियान में गांव भर में उगने वाली सभी भांग को उखाड़ दिया था। लेकिन एक जगह बची थी। स्वाभाविक रूप से, किसी ने नागस के पास उगी घास-फूस को हटाने की हिम्मत नहीं की।और वही उसके बचाव में काम आया।
मेरा मानना है कि नागस जैसी विश्वास प्रणालियाँ हमारे पूर्वजों के अनुभवों और उनके सामूहिक दृष्टिकोण की झलक पेश करती हैं । दुनिया इतनी बड़ी है। हमारे साथ कई जीव जंतु हमारे पर्यावरण में रह रहे हैं। नागस जैसी विश्वास प्रणालियाँ नैतिकता या मनुष्य के लिए उपयोगिता पर आधारित नहीं है। नागस का मालिक कौन है या इसके आसपास उगने वाली भांग के साथ हमें क्या करना चाहिए? इन सवालों का उत्तर इंसानों के इर्द गिर्द नहीं घूमता। समझना ज़रूरी है के हम इंसान पारिस्थितिकी तंत्र यानि इकोसिस्टम का हिस्सा है। नागस जैसी विश्वास प्रणालियाँ जीवन के परस्पर जुड़े जाल के भीतर मनुष्यों की अंतर्निहितता को उजागर करते हैं।
Meet the storyteller
Pramiti Negi
Pramiti Negi is an avid enthusiast of Ghibli movies and loves collecting different varieties of green tea. A simple way to please her is to make her a personalized music playlist. She strives to incorporate elements of the storytelling traditions which she inherited from her ancestors, into her work. She aspires to finish writing her first novel before she turns 30. Pramiti lives in Rekong Peo, in the border district of Kinnaur in Himachal Pradesh and is currently a Himal Prakriti Fellow.
प्रमिति नेगी घिबली फिल्मों की शौकीन हैं और उन्हें विभिन्न प्रकार की ग्रीन टी इकट्ठा करना पसंद है। उसे खुश करने का एक सरल तरीका यह है कि उसके पसन्द का संगीत प्लेलिस्ट बना कर उसे दे दी जाए। वह अपने काम में कहानी कहने की उन परंपराओं के तत्वों को शामिल करने का प्रयास करती हैं जो उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली हैं। वह 30 साल की होने से पहले अपना पहला उपन्यास लिखना चाहती है। प्रमिति हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती जिले किन्नौर के रिकांग पियो में रहती हैं और वर्तमान में हिमल प्रकृति फेलो हैं।