Biodiversity,  Uttarakhand,  Video (Hindi)

तिमला पात व इसके फूल- अंजीर वृक्षों का रहस्यमय जीवन

तिमला या अंजीर का पेड़ हिमालय के ग्रामीण समुदायों के जीवन में कई महत्व रखता है। यह कहानी शुभ अवसरों पर खाने के लिए तिमला के पत्तों के कटोरे बनाने की कला, तिमला के फूल के रहस्य और इससे जुड़ी मान्यताओं की पड़ताल करती है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से तिमला के आवास स्थल में परिवर्तन के साथ पहाड़ों की बदलती जीवन शैली का इस पेड़ के महत्त्व पर टिप्पणी करते हुए कहानीकार याद दिलाती है कि पर्वतीय जीवन में जैव विविधता की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है।

कहानीकार- भावना ठाकुनी
ग्राम सरमोली, मुनस्यारी, जिला पिथौरागढ़
उत्तराखंड

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एक समय था जब उत्तराखण्ड हिमालय के हमारे गांव-घरों में जब भी पूजा पाठ, शादी-ब्याह या कोई शुभ कार्य हुआ करता था, तब हम तिमला पेड़ की पत्तियों को बोरियों में भर कर मांगाया करते थे। यह पेड़ हमारे यहां गोरी घाटी के गरम इलाकों में पाए जाते थे।


मेरी दादी कहा करती हैं-
“हम पहले जमाने में मिलकर तिमला की पत्ती का पुर यानि कटोरा व थाली बनाकर खाना खाते थे। उस समय कहाँ थाली और डिस्पोज़बल प्लेट थे जो कि आज के दिन प्रदूषण का कारण बन रहे हैं।”


उन दिनों पानी के स्रोत व धारा भी गांव से दूर हुआ करता था, इसलिये पत्तियों का उपयोग करते थे। खाना खाने के बाद जूठे तिमला के पत्तियों को एक जगह इकठ्ठा कर जानवरों को खिला दिया करते थे। बाकी के पत्ते खाद के लिये काम आ जाते था।
 
हमारे गांव में बागेश्वर जिले से ब्याह कर आई एक साथी बताती है कि उन्होंने पहले तिमला के पेड़ को सरमोली गाँव में नहीं देखा था, जो अब दिख रहे हैं। उनके विवाह में तिमला पात का इस्तेमाल किया गया था। आज रीति-रिवाज के चलते सिर्फ शादियों व पूजा-पाठ में शुद्ध मान कर इसका उपयोग किया जाता है।
 
एक और साथी, जिसका बचपन मध्य-हिमालय की गर्म घाटी में कटा, बताती है कि कैसे वे तिमला के फल का चटपटा चटनी बनकार गर्मियों में मज़ा लिया करते थे। आज तक वे सोचती रही कि कभी उन्हें तिमला का फूल नहीं मिला पाया। बचपन में उन्हें बताया गया था कि जिसे तिमला का फूल मिलेगा, वो अमीर हो जाएगा।
 
इस कहानी को रचते समय मैंने तिमला के पेड़ के फूलों के रहस्य को जाना।
और तिमला के पात से पुर बनाने की विधि को सीखा।
यह जाना कि जो पेड़ सिर्फ हिमालय की गर्म घाटियों में उगा करते थे- मौसम परिवर्तन और बढ़ती गर्मी के चलते पिछले दषक में हमारे गांव सरमोली और पढ़ोस के गांव शंखधुरा में उगते दिख रहे हैं- भले ही उनकी कद अभी छोटी है।
 
हिमालय के हमारे गांव-घर आज भी जंगलों पर निर्भर है। मुझे लगा है कि तिमला पत्ति ही नहीं, हमारे यहां पाए जाने वाले कई चौडे पत्तियों का पुर बना कर हम बड़े उत्सवों में खाने के लिए उपयोग कर सकते हैं जिससे कुछ तो कुड़ा कम हो।


मूल बात यह भी है कि हिमालय के गांव-घरों के जीवन जीने के लिये जंगलों में छिपी जैव विविधता के महत्व की समझ को हम बरकरार रखें।

Meet the storyteller

Bhawana Thakuni
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Bhawana Thakuni, known as Bhanu to her friends, is from a farming family of Sarmoli village. She has been part of Maati collective since childhood, where she would tag along with her grandmother. Today she lends her youthful energy in the collective on issues of struggles and celebrations of the region. Bhanu enjoys sharing proverbs and joking around with people. Since 2004, she has been lending a helping hand in running her grandmother's home stay, and is known for her tasteful food. Bhanu is an independent and sorted young woman who has decided to stay with her family and in her village.

 

भावना ठाकुनी, उर्फ भानू, सरमोली गांव के एक किसान परिवार से हैं। बचपन से वो अपनी दादी के साथ माटी संगठन में आया करती थी। आज वो संगठन में क्षेत्र के सुख-दुख के मुद्दों और संघर्षों में युवा ऊर्जा का प्रतीक है। भानू को कहावते कहने में और लोगों के साथ हंसी-मजाक करने में आनंद आता है। 2004 से वो अपनी दादी के होम स्टे चलाने में हाथ बटाने के साथ अपने हाथ के स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। भानू एक स्वछंद व सुलझी महिला है जिसने अपने परिवार व गांव में रहने का फैसला लिया है। 

 

 

Voices of Rural India
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Voices of Rural India is a not-for-profit digital initiative that took birth during the pandemic lockdown of 2020 to host curated stories by rural storytellers, in their own voices. With nearly 80 stories from 11 states of India, this platform facilitates storytellers to leverage digital technology and relate their stories through the written word, photo and video stories.

ग्रामीण भारत की आवाज़ें एक नॉट-फ़ॉर-प्रॉफ़िट डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म है जो 2020 के महामारी लॉकडाउन के दौरान शुरू हुई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीण कहानीकारों द्वारा उनकी अपनी आवाज़ में कहानियों को प्रस्तुत करना है। भारत के 11 राज्यों की लगभग 80  कहानियों के साथ, यह मंच कहानीकारों को डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर और लिखित शब्द, फ़ोटो और वीडियो कहानियों के माध्यम से अपनी कहानियाँ बताने में सक्रीय रूप से सहयोग देता है।

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