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चन्देरी: साड़ियों के पीछे का इतिहास

लेखक – मुज़फ़्फ़र अंसारी

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यूँ तो १४, १५, सेंच्युरी में कई प्रसिद्द यात्रियों का यह से गुज़ार हुआ जिसमें इबने बतूता का नाम प्रमुख है , परंतु जब भारत में मुग़लिया सल्तनत की नीव पड़ते ही पहले मुग़ल शासक ने चार प्रसिद्ध नगरों को अपना निशाना बनाया उसमें एक नाम चन्देरी का भी है . यह नगर भारत के उत्तर दक्षिण के व्यापारिक मार्ग पर स्थित था , यानी धन दौलत से भरपूर नगर खूब लूटा गया ।

चन्देरी को धन दौलत से भरपूर होने के बारे में अलाउद्दीन ख़िलजी ने जब बुंदेलखंड और मालवा पर अभियान चलाए तो उसने जलालुद्दीन ख़िलजी को पत्र लिख कर चन्देरी और उसके आस पास के धनवान राजाओं को लूट कर अपनी और सल्तनत आमदानी को बड़ाने की इजाज़त माँगी , आय इजाज़त जलालुद्दीन को भारी पड़ी थी ।

 हम बात कर रहे हैं उस प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग की जो दिल्ली से निकल कर बुंदेलखंड और फिर चन्देरी से मालवा की ओर जाता । यहा के प्रसिद्ध व्यापारिक नगरों में चन्देरी के अलावा सिरोंज विदिशा , उज्जैन धारा नगरी को जोड़ता हुआ फिर दक्षिण को चला जाता था ।

जैसा कि विदित है चन्देरी चारों ओर से विंध्यांचल पर्वतों की सुरम्य वादियोंऔर जंगलो से घिरा हुआ क्षेत्र है , जब व्यापारी उत्तर से बुंदेलखंड , मालवा जाते एक रात चन्देरी में पहुँच कर चैन की साँस लेता , मगर चन्देरी से जब मालवा रुख़ करता तो जंगलों के रास्ते में अक्सर लूट पाट  का शिकार होता जाता । परेशान हो कर व्यापारियों ने एक दूसरा मार्ग बनाया जो चन्देरी आते ही लेकिन पछार की तरफ़ न जाकर चन्देरी से पिपराई सिरोंज की ओर से उज्जैन पहुँच जाता था पहले मार्ग से जया सुरक्षित था, लेकिन अभी कुछ और उपायों की ज़रूरत थी । तब चन्देरी से आठ मील पर बेलन नदी के किनारे पर सहराई पड़ाओ बनाया जहाँ व्यापारी रात्रि विश्र्स्म कर सुबह पिपराई को प्रस्थान करते जहां मालवा के व्यापारी उत्तर से आए व्यापारियों से माल की ख़रीद फ़रोख़्त करते , व्यापारियों के कारवाँ वापस बुंदेलखंड को प्रस्थान करते ।

आइने अकबरी के लेखक अबू फ़ज़ल लिखते हैं कि , चन्देरी , सिरोंज दौरे अकबरी के बड़े नगर हैं , चन्देरी की आबादी एक लाख पचहत्तर हज़ार है , यह तीन सौ चौरासी बाज़ार हैं और तीन सौ साथ मुसाफ़िर खाने हैं , ज़ाहिर है जहां व्यापारी आ कर ठहरते और ख़रीद फ़रोख़्त करते होंगे । सब बात करते हैं कि चन्देरी , सिरोंज में ऐसी क्या चीज़ें होती थी जो उस दौर के व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करती रही थीं? तो आपको बतादें कि चन्देरी , सिरोंज हस्त निर्मित वस्त्रों के लिए मशहूर थे ( चन्देरी तो आज भी पूरे देश में प्रसिद्ध है)सिरोंज , मोटा कपड़ा तो चन्देरी में सौने चाँदी के तारों से निर्मित क़ीमती वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध थी।

चन्देरी जब बड़ा नगर हुआ करता था | फोटो: मुज़फ़्फ़र अंसारी तो कई प्रकार के देसी नस्ल के पालतू जानवरों के मेले लगाए जाते थे, जिन्हें ख़रीद ने के लिए आस पास के व्यापारी आया करते थे ।अकबर ने जिस समय चन्देरी को मालवा सूबे में सरकार का सादर मुक़ाम बनाया इस की तरक़्क़ी में चार चाँद लग गए । उस समय इसके मातहत , कई मंडियाँ जैसे

 बाराँ, मनोहर थाना, गंज बासौदा,पछत, तुमैन, विदिशा, बैरसिया , सिरोंज , पिपराई , गुना, और कोरबाई की मंडियाँ आने लगी थी। चन्देरीकी रेवेन्यू मुग़ल हुकूमत के लिए बड़ी मददगार साबित हुईं। यहाँ के व्यापार में , आसपास विद्धमान घने जंगलो से भी आमदानी होती थी ।यहाँ जडीबूटियों , के अलावा जंगली हाथियों के झुंड पाए जाते थे, कभी कभी मुग़ल बादशाह अकबर उनका शिकार करने आते और उनका इस्तेमाल अपनी सेना में करते थे । आज भी यहाँ एक परिवार हाथीशाह के नाम से मशहूर है जिनके पूर्वज हाथियों का व्यापार किया करते होंगे । जब कि जड़ी बूटियों का आज भी चन्देरी में बड़ा व्यापार होता है ।

ग्वालियर के संग्रालय में टायगरों की ममियाँ और सोने चाँदी से निर्मित वस्त्र प्रदर्शित है। १३/१४ वीं , सदी के इस व्यापारिक मार्ग का अंत उस समय हो गया जिस समय यह पूरा क्षेत्र अंग्रेजो के हाथ आ गया , इन्होंने अपने व्यापारिक मार्ग दूसरे बना लिए ,तब से बुंदेलखण्ड और मालवा का सात सौ साल  पुराना मार्ग इतिहास के पन्नों में खो गया ।

पुरानी शिकार घर | फोटो: मुज़फ़्फ़र अंसारी

प्राचीन भारत में व्यापारिक मार्गों की बड़ी अहमियत् हुआ करती थी , ऐसा हमको इतिहास के पन्नों से मालूम होता है । मुग़लिया दौर के कुछ महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों में एक मार्ग दिल्ली , मथुरा, आगरा धोलपुर ग्वालियर, नर्वर, चन्देरी फिर पछार और मालवा में सिरोंज पहुँच कर उज्जैन की ओर चला था |

यह मार्ग भारत के प्रमुख मार्गों में से एक था ।दिल्ली सल्तनत कई सुल्तानों ने इस मार्ग का उपयोग किया था , शम्सुद्दीन अल्तमश,ग़यासुद्दीन बल्बन, अलाउद्दीन ख़िलजी, तुग़लक़ सुल्तान , दिलावर खान गौरी , राणा सांगा (चित्तोड), इब्राहीमलोदी, और बाबर जैसे मशहूर शासकों ने इस मार्ग पर अपने पह चिन्ह छोड़े हैं।

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Meet the storyteller

Muzaffar Ansari
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Muzaffar ansari, most commonly known by the name Kalle Bhai in Chanderi town of Madhya Pradesh, is a guide, weaver, historian and a collector of old books, stone age tools and fossils. His collections have been part of the museum in the town and three books have been published so far under his name. He is deeply passionate about sharing and preserving the rich history of Chanderi through guided tours, conducting field visits with PHD research scholars and engaging with local children in the forests. He has been helping Digikargha to connect with the artisans of Chanderi who were digitally empowered to enhance their weaving tradition.

 

Digikargha
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DigiKargha is a platform that celebrates the digital artisans of India in an effort to safeguard the interests of India’s craftsmen. Established as a not-for-profit Section 8 company in 2017 to lead Digital Empowerment Foundation’s efforts in the handicraft and hand loom clusters towards maturity, DigiKargha bridges the gap between the producers and the consumers.

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