बालक घुघूती का जीवन कौओं ने कैसे बचाया
मकर संक्रांति का दिन था और मैं सुबह 4 बजे उठ गयी थी। आज घुघूती त्यौहार का दिन था और गांव से पार पंचाचूली पर्वत के पीछे से सूरज के उगने में अभी समय था। कड़ाके की ठंड में मैंने घर की लिपाई की, फिर नहाना धोना करके अपने घर के मन्दिर मे दीया बाती कर लिया था। दिन के एक बजे तक से मैंने आटे, गुड, घी को दूध में गूंध और तेल में तलकर घुघूती बना लिये।
मेरे को घुघूती बनाना बहुत अच्छा लगता है और और सरमोली के बच्चों को इन घुघूती की माला देने में अपने मायके की याद आती है। बचपन में सवेर जल्दी उठकर मैं घुघूती की माला के लिए अपने पडोस में जाया करती थी और जब किसी ने माला दिया तो खुश हो जाती थी। हमारे मुनस्यारी में इस त्यौहार का आज भी बहुत मान्यता है और बड़ा त्यौहार माना जाता है ।
बहुत साल पहले का किस्सा है। कुमांऊ में कल्याण चन्द्र वशं का राजा राज्य करता था। उसकी कोई सन्तान नहीं थी। राजा को चिन्ता होने लगी- “मेरे बाद राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा?”
एक दिन उन्हें सपने मे शिवजी के रुप मे भगवान बागनाथ प्रकट हुऐ। भगवान बागनाथ ने राजा से कहा- “अगर तुम मेरा मन्दिर स्थापित करोगे तो तुम्हारी सन्तान पैदा होगी।”
राजा ने रानी को अपने सपने की बात बताई तो रानी बहुत खुश हो गयी और राजा को मन्दिर बनाने के लिऐ कहा। राजा ने मन्दिर बनाया जो आज के दिन बागेश्वर में स्थित है। राजा रानी का फिर एक पुत्र पैदा हुआ । पुत्र शुक्ल पक्ष के चाँद की तरह दिन प्रति दिन बड़ा होने लगा। राजा रानी उसे प्यार से घुघूति करके बुलाते थे ।बालक के गले मे एक घुंघरु की माला पहनाया हुआ था और उस माला का नाम भी घुघूति रखा था ।
जब बालक नटखट हरकते करता था तो रानी कहती थी- “ तेरी माला को मैं कौआ को दे देती हूँ”- तो बालक चुप हो जाता था।
राजा के दरबार में एक मन्त्री बहुत चालाक था और वह सोचता था कि राजा के बाद मैं इस राज्य का उत्तराधिकारी बनूँ। लालच मे आकर उसने बालक घुघूति को मारने की साजिश रची। एक दीन मौके को देखकर मन्त्री ने बालक को अपने पास बुलाया और उसे एक जगंल में ले गया। घुघूति को जगंल में ले जाते समय कौवो ने उन्हें देख लिया। जहां-जहां मन्त्री बालक को घुमाने के लिये ले जाता था, वहीं सारे कौव्वे उड़कर पहँच जाते और “काँव काँव” करते। इनमें से एक कौव्वे ने मौका देखकर घुघूति के गले से घुंघरु वाली माला नोचकर राजमहल की और उड़ चला।
वहां राजमहल मे घुघूती को नहीं देखकर राजा रानी बहुत चिन्तित हो गये थे। राजा को शक हो गया कि जो मन्त्री बहुत चालाक और चापलूसी करता था और घुघूती को देखकर ईरशा करता था उसी ने कुछ किया होगा । राजा ने सारे मन्त्रियों व पहरेदारों को बालक को ढुंढने के लिए लगा दिया।
जब मन्त्रियों ने घुंघरु की माला कौव्वे के चोंच में देखी और राजा रानी को कहा तो राजा रानी ने सोचा की कौआ कोई शुभ समाचार लाया होगा। कौआ राजा रानी को जहाँ बालक घुघूती था वहीं ले गया । बालक घुघूति को पाकर राजा रानी और राज्य के सभी लोग खुश हुए। राजा रानी ने कौआ को बार बार प्रणाम किया और घुघूति
को मारने की साजिश करने वाले उस मन्त्री को सजा दी ।
राजा रानी ने घुघूति के घर आने की खुशी में अलग अलग प्रकार के पकवान बनावाये। सबसे पहले राजा ने कौव्वों को खाना खिलाया । समय था पौष माह का आखरी दिन। शाम हो जाने के कारण कौव्वे दावत में उस दिन नहीं आ पाये। इसी लिये कौव्वो को माघ महीने के पहले दिन ख़ास बुलाया गया और दावत दी गयी।
आज उसी की याद में माघ के पहले दिन सारे कुमांऊ में कौव्वो को बुलाते है- “काले कव्वा- काले कव्वा, घुघूती माला खाले” करके बच्चें सुबह उठकर नहा धोकर कौव्वें को अपने आगंन से कौवों को बुलाते है।
पहले खाना बनाके कौव्वो को ही देते है। गांव के बच्चों गले मे घुघूति की माला पहना दिनभर धूमते हैं।
मैं कमला पाण्डे बचपन से अपने घर में कहानी व कथाएं सुनती आयी हूँ। पंडितों का काम ही ऐसी कहानियां बताना हैं जिसमें जीवन की सीख और ज्ञान छुपा हुआ हैं।