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क्या उत्तराखंड के पहाड़ों में आज भी परियां वास करती है?


लेखिका: बीना नित्वाल, फ़ेलो हिमल प्रकृति


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हिमालय के बागेश्वर जिले के मेरे गांव फरसाली में बचपन से ही मैं परियों के कहानी सुनते हुए बड़ी हुई। मैं जब अपनी सहेलियों के साथ बाहर घूमने जाती थी तो हमेशा मुझे मेरी माँ से डांट पड़ती थी- 

“ए-बीना, जंगल में ऊतपटांग काम मत करना, नहीं तो परी लग जाएगी… फिर हमें पूजा करवानी पड़ेगी! एक और खर्चे की नौबत लेकर आएगी।” 

उन्हें पता था कि हम एक दूसरे को जोर-जोर से बुलाते थे, पेड़ों पर चढ़कर गाना गाते थे और जंगल में झूला डाल कर खेलते थे। मैं अपनी माँ की बात बिल्कुल ही नहीं सुनती थी, बल्कि हम लोग तो पारियों के डोली से उनके लिए चढ़ऐ हुए फल और नारियल खा लिया करती थीं। मन में थोड़ा डर तो था ही- क्या जो होगा? पर कुछ बुरा हुआ नहीं।

गाँव-घर के लोग परियों के साये में बहुत विश्वास करतें हैं। इन्हें हमारे यहाँ एरी- आंचरी  कहतें हैं । लोगों का मानना है कि वे जंगल में रहते हैं और अगर कोई जंगल में जाता है और गिर-पड़ जाता है या डर जाता है तो उनको एरी- आंचरी  पकड़ लेती हैं ।  

मेरे ससुराल के गांव, सरमोली के लोग मानते हैं कि एड़ी पुरुष का रूप होता है और इनको पूजते समय बाँसुरी ,बंदूक और लाठी चढ़ाया जाता है। लाठी तिमूर के पेड़ की टहनी का बनाते हैं। आंचरी महिला होती है और इनको सफेद कपड़े, श्रिंगार का समान, फूल, पीला चंदन,  दूध में बना पकवान और खील-खाजा चढ़ाया जाता हैं । हमारी पुराने मान्यताओं के अनुसार इन्हें चढ़ाया हुआ खील खाजा एरी- आंचरीअपने दोस्तों और परिवार वालों के बीच बाँटतें हैं। एरी आंचरी और आन बांन की पूजा करने  के लिए लोग जंगल में पेड़ पौधे से घिरा साफ और एकांत जगह ढूंढ कर तीन पत्थर से इनका घर बनाते हैं। उस पर पीले, सफेद और लाल कपड़े से सजाकर उनको वहाँ पर बैठा कर भोग लागतें है। कुछ लोग दो तीन साल में इनके लिएजागरण करवाते है। मांगी हुई मन्नत पूरा होने पर भी इनके लिए हर तीन, पाँच या सात साल में जागरण करवते है। जागरण में यह माना जाता है कि किसी न किसी के शरीर में एरी आंचरी आकार नाचते हैं, खाना खाते हैं और- “मेरा पेट भर गया है और मैं खुश हूँ” कह कर चले जाते हैं।

एरी- आंचरी का परिवार बहुत बड़ा माना जाता है जिसमें आन और बान भी होते है । ऐड़ी– आंचरी का ओहदा ऊपर होता है और आन बान इनके सेवक होते हैं। 

आन बान बहुत प्रकार के होते हैं जिन में प्रमुख लाल, पीला, काला, सफेद इत्यादी होते हैं । इनका भोजन शिकार, नीबू ,कच्चा और अधपकी खिचड़ी होती है। आन बांन के परिवार में सबसे शक्तिशाली लाल बांन माने जाते हैं। जब यह किसी को ऊपर आता है तो उससे सम्भालना बहुत मुश्किल माना जाता है ।  मान्यताओं के अनुसार लाल बान बहुत गुस्सैल और विद्रोही स्वभाव के होतें हैं। इन्हें भोग लगाकर शान्त किया जाता है और कहा जाता है –

आन बान मानेंगे तो देवता भी मान जायेंगे”।

आन बांन शिकार खाते है। अगर ये किसी को लग जाए तो उससे छुड़ाने के लिए उनको बलि चढ़ाई जाती है। काले और लाल बांन को उरद के दाल की अध-पक्की खिचड़ी और माँस पसंद है। लूला बान चल नहीं सकता है, जब यह किसी को लगता है तो वो लोग भी चलना बंद कर देते हैं। 

एक ट्वाल बान होता है जो कि पुरुष होता है और उसे कहानी इशारों में सुनना पसंद हैं । जिसके शरीर में वे प्रकट होते है, उन्हें बाजे के धुन पर मनाना पड़ता है। 

आज भी सितंबर और अक्टूबर के महीने में पहाड़ी गांव घर के लोग इनको पूजने वनों में जाते हैं। 

आएइ, मेरे इस विडियो में सरमोली गांव के लोगों से एरी- आंचरियों पर उनकी मान्यताओं के बारे जानते हैं। 

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Himalayan Ark is mountain community owned and run tourism enterprise based in Munsiari, Uttarakhand. They enable and guide deep dives into rural lives and cultures, as well as in natural history and high mountain conservation initiatives and adventures. in the past 2 years spotlighted stories in the written word, through photo and video stories from across the Indian Himalayan Region.

हिमालयन आर्क एक पर्वतीय समुदाय द्वारा स्वामित्व और संचालित पर्यटन उद्यम है, जो उत्तराखंड के मुनस्यारी में स्थित है। पहाड़ी ग्रामीण जीवन और संस्कृतियों के साथ यह पर्यटन कम्पनी प्राकृतिक इतिहास और उच्च पर्वतीय संरक्षण पहलों और रोमांचक अभियानों में गहन अनुभव प्रदान करने और मार्गदर्शन करने का कार्य करता है।

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