Biodiversity,  Hindi,  Uttarakhand,  Video (Hindi)

एक भिड़ंत: भेड़ पालन और वन पंचायत

कहानीकार- हर्ष मोहन भाकुनी
ग्राम सरमोली, मुनस्यारी, जिला पिथौरागढ़
उत्तराखंड

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बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच एक सुंदर गांव- सरमोली में मेरा बचपन गुज़रा है। जंगलों के पशु-पक्षी, तितलियां, पेड़-पौधे, नदी-तालाब के साथ मेरा बहुत लगाव है और सच कहूँ तो इतनी खूबसूरती मैंने आज तक कहीं नहीं देखी! कहते है- ‘सौ संसार एक मुंसियार’, लेकिन जब मैं बचपन से आज तक के बदलाव देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि कई चीजे बदलीं है जिनका हमारे जंगलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

पिछले कुछ समय से मैंने क्षेत्र के वन पंचायत के मुद्दों पर काम करना शुरू किया है। हमारे जंगलों पर निर्भरता और उन्हें बचाए रखने पर अपनी समझ बढ़ाने के लिए मैंने एक वीडियो कहानी बनाई है जो उत्तराखण्ड के हमारे वन पंचायतों के एक अहम पहलू को दर्शाती है। यह कहानी एक ऐसे दम्पत्ति-खुशाल और बीना नित्वाल जी की है जो मुनस्यारी के शंखधुरा वन पंचायत के हकदार हैं और दो विपरीत प्रतीत होने वाले परिपेक्ष को उजागर करती हैं ।

फोटो : बीना और खुशाल नित्वाल

खुशाल नित्वाल अपनी आजीविका के लिए भेड़ पालन करते है और बीना जी पर्यटकों के लिए होमस्टे और स्थानीय महिलाओं के एक संगठन- माटी में कार्य करती है। इसके साथ आज के दिन बीना शंखधुरा के वन पंचायत की पंच भी है। इस वन पंचायत में 3 भेड़ पालक है और अन्य गांव से भी भेड़पालक यहां अपनी भेड़-बकरी और गाय चुगाने आते है। एक तरफ बीना जी पंचायत समिति के साथ वन पंचायत को संरक्षित करने के कार्यकलापों में शामिल होती है, तो दूसरी तरफ उनके पति खुशाल जी के भेड़ो से उसी वन के नुकसान हो रहा हें।

खुशाल नित्वाल अपनी आजीविका के लिए भेड़ पालन करते है और बीना जी पर्यटकों के लिए होमस्टे और स्थानीय महिलाओं के एक संगठन- माटी में कार्य करती है। इसके साथ आज के दिन बीना शंखधुरा के वन पंचायत की पंच भी है। इस वन पंचायत में 3 भेड़ पालक है और अन्य गांव से भी भेड़पालक यहां अपनी भेड़-बकरी और गाय चुगाने आते है। एक तरफ बीना जी पंचायत समिति के साथ वन पंचायत को संरक्षित करने के कार्यकलापों में शामिल होती है, तो दूसरी तरफ उनके पति खुशाल जी के भेड़ो से उसी वन के नुकसान हो रहा हें।

फोटो : उच्च हिमालय के बुगियालों में चरते भेड़

इस नुक्सान के चलते हकदार होते हुए भी भेड़ पालकों को सालभर एक ही जगह रहकर वन पंचायत में चुगाने से मना किया जाता है। बीना जी सबको वन पंचायत में भेड़ पालन करने से मना करती हैं और उनकी अपने परिवार में भी इस पर बहस होती हैं। चूंकी दोनों का काम अलग है, इसलिए दोनों के बीच इस मुद्दे को लेकर टकरार हुआ है। आजीविका और संरक्षण के इस टकराव में वनों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इन दोनों ने मिलकर क्या निर्णय लिया, यह कहानी बताती है। कैसे सीमित वन क्षेत्र के साथ सीमित भेड़ पालन किया जा सके और शीत ऋतु में शंखधुरा के उच्च हिमालय के वन पंचायत में न रहकर नीचे हल्द्वानी के आसपस भाबर पलायन किया जाए, ताकि एक ही जगह रहकर वनों पर अत्याधिक दबाव व नुक़सान होने से बचा जा सके। जहां एक तरफ हिमालय के ग्रामीणों की आजीविका के लिए भेड़ पालन करना अहम है, वहीं वन पंचायत को बचाने के लिए सीज़नी पलायन करना भी जरूरी है।

गुत्थी संतुलन बनाए रखने में निहित है।

Meet the storyteller

Harsh Mohan Bhakuni
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Harsh Mohan has spent the 25 years of his life in Sarmoli village, located right across the Panchachuli mountain range and his wish is to stay here for the rest of his life. When he gets a chance, he has the habit of sitting alone in nature, gazing at the mountains and relishing the quietness. Harsh likes watching science fiction films and plays the 'Backi' position in football. His dream is to open his own café one day.

Voices of Rural India
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Voices of Rural India is a not-for-profit digital initiative that took birth during the pandemic lockdown of 2020 to host curated stories by rural storytellers, in their own voices. With nearly 80 stories from 11 states of India, this platform facilitates storytellers to leverage digital technology and relate their stories through the written word, photo and video stories.

ग्रामीण भारत की आवाज़ें एक नॉट-फ़ॉर-प्रॉफ़िट डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म है जो 2020 के महामारी लॉकडाउन के दौरान शुरू हुई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीण कहानीकारों द्वारा उनकी अपनी आवाज़ में कहानियों को प्रस्तुत करना है। भारत के 11 राज्यों की लगभग 80  कहानियों के साथ, यह मंच कहानीकारों को डिजिटल तकनीक का प्रयोग कर और लिखित शब्द, फ़ोटो और वीडियो कहानियों के माध्यम से अपनी कहानियाँ बताने में सक्रीय रूप से सहयोग देता है।

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