एक नदी का उत्थान और पतन
लेखक: परस राम भारती
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तीर्थन नदी से मेरी कई निजी यादें जुड़ी हुई हैं। मेरा घर नदी से करीब 100 गज की दूरी पर ही है। बचपन से ही मैंने इस नदी में खेलना, कूदना, तैरना और मछली पकड़ना सीखा है। अपने जीवन काल में देश व प्रदेश की बहुत नदियां देखी लेकिन इस नदी का शीशे की तरह साफ पानी और यहाँ पर पाई जाने वाली ट्राउट मछली की वजह से यह अपनी विशेष पहचान रखती है। वर्ष 2015 के बाद से तो भरपूर पर्यटन सीज़न के दौरान सैलानीयों को तीर्थन नदी में फिशिंग, पिकनिक, नदी भ्रमण और रिवर क्रॉसिंग करवाना तो लगभग रोज का कार्य रहता है।
मेरा गाँव रोपाजानी तीर्थन घाटी के केन्द्र बिन्दु और ग्रेट हिमालयन नॅशनल पार्क के प्रवेश द्वार गुशैनी से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर नदी के बाएं किनारे बसा पहला छोटा सा गाँव है। करीब छह दशक पूर्व तक इस गाँव में एक दो मकान ही हुआ करते थे लेकिन आज के समय यहाँ पर करीब 12 घर बन चुके हैं।
कुछ वर्षों पूर्व तक इस नदी का जल स्तर काफी ऊँचा रहता था और ट्राउट मछलियाँ भी बहुतायत में पाई जाती थीं। इस नदी की जलधारा से मेरे सामने तक सैंकड़ों देसी घराट भी चलते थे लेकिन आज के समय यह नदी गहराई की ओर सिकुड़ती नजर आ रही है। जिस कारण यहाँ पर पाई जाने वाली ट्राउट मछली और देसी घराट के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। वर्ष 2005 में आई भयंकर बाढ़ में तो इस नदी ने अपना नक्शा ही बदल के रख दिया है।
घाटी के बुजुर्ग कहते हैं कि किसी जमाने में इस नदी का जल स्तर काफी ऊँचा रहा होगा क्योंकि आज भी इस नदी के तट से करीब 400 मीटर तक की ऊँचाई में नदी के पत्थर और रेत मौजूद हैं।
पहले बहुत ही कम लोग नदी के पास रहना पसंद करते थे लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई लोगों ने नदी के समीप रहना शुरू किया। आज के समय नदी के आसपास कई गाँव और बस्तियाँ बस चुकी हैं जो यही से ही नदी में प्रदूषण की शुरुआत भी हुई है। आज के समय में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए निकलने वाली सड़कों ने भी इस नदी की दुर्दशा कर दी है। अवैध डंपिंग और प्रदूषण से ट्राउट मछलियों और देसी घराट के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है जो कि बहुत ही चिंतनीय विषय है।
हिमालय पर्वत के तीर्थ जोत/टॉप की ऊँचाई समुद्र तट से करीब 3500 मीटर पर है। यहाँ पर मौजूद हिम के विशाल भण्डारों के पिघलने पर ही मध्यवर्गीय तीर्थन नदी का जन्म हुआ है। हिमाच्छादित पर्वत तीर्थ से उगम होने के कारण ही इस नदी का नाम तीर्थन पड़ा है और नदी के दोनों छोरों/ किनारों पर बसी वादियाँ ही तीर्थन घाटी कहलाती हैं। तीर्थ पर्वत से निकली तीर्थन नदी की वजह से ही तीर्थन घाटी का विशेष महत्व है।
उपमण्डल बंजार की दुर्गम ग्राम पंचायत नोहण्डा में स्थित तीर्थ टॉप के हँसकुण्ड नामक स्थान पर तीर्थन नदी का उदगम स्थल माना जाता है। स्थानीय देव परम्परा के अनुसार तीर्थन नदी के उदगम स्थल हँसकुण्ड को बहुत ही पवित्र स्थान माना गया है। तीर्थ टॉप के हँसकुण्ड नामक स्थान पर दो अलग अलग दिशा से आई जलधाराओं का संगम भी होता है। घाटी में हर नदी नालों के उदगम और संगम स्थलों को पवित्र माना जाता है। विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नॅशनल पार्क के कोर ज़ोन तीर्थ से निकलकर यह नदी अविरल बहती, पहाड़ियों के बीच से दहाड़ती और टकराती हुई रोला, दरखली,रोपा, गुशैनी, खुंदन बंजार, मंगलौर और बालीचौकी नामक स्थानों से होकर करीब 60 किलोमीटर का सफर तय करने के पश्चात आगे लारजी नामक स्थान पर व्यास नदी और सैंज नदी के संगम स्थल पर बने बिजली परियोजना के बांध में जाकर मिलती है। ग्रेट हिमालयन नॅशनल पार्क के प्रवेश द्वार दरखली नामक स्थान से आगे का पूरा तीर्थ क्षेत्र पार्क के कोर ज़ोन में आता है। यह क्षेत्र अति दुर्लभ औषधीय जड़ी बूटियों और जैविक विविधताओं का खजाना है। जड़ी बूटियों के सम्पर्क में आने के कारण यहां से निकलने वाली जलधाराओं नदी और नालों का पानी भी औषधीय गुणों वाला बनता है।
विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नॅशनल पार्क के कोर ज़ोन तीर्थ टॉप से लेकर गुशैनी नामक स्थान तक इस नदी से सटे दोनों किनारों पर कोई भी बस्ती या आबादी नहीं है। गुशैनी में भी दो जलधाराओं फ्लाचन और तीर्थन नदी का संगम स्थल है। इस स्थान पर तीर्थन घाटी की आराध्य देवी गाड़ा दुर्गा का एक प्राचीन मन्दिर भी है इसलिए इस स्थल को भी बहुत पवित्र माना गया है। जो बुज़ुर्ग व्यक्ति, अपंग या महिला तीर्थ यात्रा पर न जा सकते हो वे इस स्थान पर ही नदी के जल से अपनी शुद्धि कर लेते हैं। तीर्थन नदी के जल को गंगाजल की तरह शुद्ध माना जाता है। कई लोग गुशैनी नामक स्थान से पानी भरकर अपने घरों को लेकर जाते हैं और इसे बतौर गंगाजल इस्तेमाल करते हैं।
तीर्थन नदी में अनेकों छोटी सहायक नदियां, नालें और झरने आकर मिलते हैं जिसमें सुंगचा नाला, खरुंगचा नाला, टलिंगा नाला, तिंदर नाला, मन्हार नाला, फलाचन नदी, बशीर नाला, कलवारी नाला, जीभी खड्ड और मंगलौर नाला आदि प्रमुख हैं। समूची तीर्थन घाटी में कई छोटी नदियों, नालों, झरनों और खड्डों का जाल सा बिछा हुआ है जो घाटी में भौगोलिक दृष्टि के आधार पर ग्राम पंचायतों, कोठी, फाटी, बार्ड और गॉंवों की सीमाएँ भी निश्चित करती हैं। यहाँ पर कई छोटे मौसमी नाले भी हैं जो केबल बरसात में ही पानी से भरते हैं और बरसात खत्म होते ही या तो इनका पानी सूख जाता है या बहुत कम हो जाता है। बरसात के मौसम में तीर्थन नदी का जल स्तर काफी बढ़ जाता है। मुख्य रूप से तीर्थन नदी का स्त्रोत हिमालय पर्वत के तीर्थ टॉप पर मौजूद विशाल हिमखण्ड है जिस कारण पूरे साल भर यह नदी जल से भरी रहती है इसलिए यह नदी सदानीरा तीर्थन नदी भी कहलाती है।
ग्रेट हिमालयन नॅशनल पार्क और ट्राउट मछली के लिए विख्यात तीर्थन घाटी आज धीरे धीरे अन्तराष्ट्रीय ट्राउट पर्यटन में अपनी पहचान बना रही है। तीर्थन नदी की वजह से इस घाटी में पर्यटन की अपार संभावनाएं भरी पड़ी है। यहाँ का अलौकिक प्राकृतिक सौन्दर्य, जैविक विविधिता, पुरातन संस्कृति, कृषि, वेशभूषा, रहन सहन और ट्राउट मछली आखेट का रोमांच सैलानियों को बार बार यहाँ आने को मजबूर करता है। तीर्थन नदी की लहरों में ट्राउट फिशिंग का रोमांच लेने के लिए प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में देशी विदेशी सैलानियों के अलावा कई मछली आखेट के शौकीन भी आते हैं। तीर्थन की जलधारा पर बिजली परियोजनाओं के विरोध में यहाँ के लोगों ने अदालत तक की लम्बी लड़ाई लड़ी है ताकि इस नदी में ट्राउट मछली का संरक्षण व सम्बर्धन किया जा सके। प्रदेश की उच्च अदालत ने भी इस नदी की जलधारा पर बिजली परियोजना बनाने पर पावंदी लगाई है।
आज के समय में जल, जंगल और ज़मीन पर लगातार बढ़ते बोझ ने नदी में ट्राउट मछली के साथ साथ यहाँ पाए जाने वाले कई प्रकार के जीव जन्तुओं, परिन्दों के प्रजनन, विकास व संवर्धन पर बहुत बुरा प्रभाव छोड़ा है इसके लिए ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से कूड़ा कचरा, पॉलीथिन बैग,प्लास्टिक पदार्थ और ई वेस्ट को जंगलों, नदी व नालों में पहुंचने से पहले ही रोकना होगा और अवैध शिकारियों पर शिकंजा कसना होगा।
इस सम्बन्ध में मत्स्य विभाग अभी भी सख्त करवाई करने में इतना सफल नहीं हो रहा है जितना उसे होना चाहिए था। इस बार तो कोरोना काल और लॉक डाउन के दौरान करीब दो माह तक अवैध शिकारी जम कर बिना डर के नदी नालों में मत्स्य का समूल नाश करने में लगे रहे। यदि समय रहते इस पर सख्ती से पावंदी नहीं लगाई जाती है तो आने वाले समय में मत्स्य आखेट पर्यटन जैसा कमाई का साधन शून्य होकर रह जायेगा।
तीर्थन नदी का पानी आम तौर पर निर्मल, पारदर्शी और ठंडा रहता है जिस कारण इसमें ट्राउट मछली बहुतायात में पाई जाती है। गर्मियों के मौसम में पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ पिघलने के कारण इस नदी का जल स्तर अक्सर घटता बढ़ता रहता है। वर्ष 1909 में जी.सी.एल. हॉवेल नाम के एक अंग्रेज ने व्यास और तीर्थन नदी में ट्राउट मछली को बढ़ाने का आगाज किया था। निर्मल जल धारा में रहने वाली ट्राउट मछली की यह प्रजाति स्पोर्ट्स फिश के रूप में भी जानी जाती है जो दुनिया के नॉर्वेदेश में बहुतायात में पाई जाती है। यहाँ के भूतपूर्व विधायक दिले राम शबाब ने इसके महत्व को समझा और 1975 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर परमार मन्त्रिमण्डल ने एक अहम फैसला लेकर तीर्थन नदी की चालीस किलोमीटर लम्बी जलधारा को संरक्षित कर दिया था। उस समय इस नदी की देख रेख के लिए जगह जगह पर होमगार्ड के जवान तैनात किए गए थे। इसी का नतीजा है कि आज भी तीर्थन नदी में ट्राउट मछली का संरक्षण व संवर्धन हो रहा है और यही ट्राउट मछली फिशिंग के शौकीन देशी विदेशी सैलानियों को खुला निमन्त्रण दे रही है। इस धरोहर तीर्थन नदी में ट्राउट मछली का संरक्षण व संवर्धन किया जाना जरूरी है क्योंकि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। घाटी के प्रवुद्ध लोगों को इस नदी में फैलाए जा रहे प्रदुषण, करंट, फांसी, जाल, झटका, विस्फोटक और ब्लीचिंग पाउडर जैसे तरीकों से मछली की इस प्रजाति पर मंडरा रहे संकट से उबारने के लिए आगे आना होगा। करीब दो दशक पहले तक इस नदी में असंख्य छोटी बड़ी मछलियाँ होती थी जिन्हें नंगी आंखों से तैरते हुए देख सकते थे लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं है। नदियों की दुर्दशा से पानी प्रदूषित हो रहा है और मछलियों के आवास भी सिकुड़ रहे है। यदि यही हाल रहा तो ट्राउट मछली को बचाना मुश्किल हो जाएगा। प्रदेश सरकार और मत्स्य विभाग को ट्राउट मछली के अवैध शिकार को रोकने तथा नदी के संरक्षण की दिशा में विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है ताकि सही मायने में इस प्राकृतिक धरोहर तीर्थन नदी और मत्स्य सम्पदा का संरक्षण व संवर्धन हो सके।
मेरा अपना अनुभव है कि कुछ सालों पहले तक इस नदी के जल को पीने के पानी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था। तीर्थ टॉप के बर्फीले पहाड़ों से निकली यह शुद्ध जलधारा ग्लेशियर से सीधे ही गुशैनी पहुंचती है, यहां तक यह नदी पूर्णतया प्रदूषण रहित है। इसके औषधी युक्त जल का सेवन करने से कई बीमारियाँ दूर हो जाती थी लेकिन अब गुशैनी से आगे इसका पानी पीने लायक नहीं बचा है और खुंदन मोड़ के पास तो नगर पंचायत बंजार द्वारा कूड़ा कचरा और मलवा डम्प किया जा रहा है जो इस नदी को और भी प्रदूषित कर रहा है। इस नदी के संरक्षण के प्रति अभी तक कहीं से भी कोई पहल होती दिखाई नहीं दे रही है। इंसान अपने फायदे के लिए इस धरोहर नदी से छेड़छाड़ करने में लगा हुआ है। कई लोग तो सरेआम इस नदी में कूड़ा कचरा फेंकते हुए देखे जा सकते हैं और कई जगह तो इस नदी को डंपिंग साइट ही बनाया जा रहा है। शासन प्रशासन भी इस नदी में फैलाए जा रहे प्रदूषण, अवैध डंपिंग और नदी के करीब हो रहे अतिक्रमण से बेखबर दिख रहा है जो बहुत ही चिंतनीय विषय है। कुछ दशक पूर्व तक ही इस नदी के किनारे कई देसी घराट भी चलते थे जो आज विलुप्त होने के कगार पर खड़े हैं। इस अनमोल प्राकृतिक धरोहर तीर्थन नदी के साथ हो रही छेड़छाड़ भविष्य के लिए कोई संकट खड़ा कर सकती है। इस नदी की वजह से तीर्थन घाटी के पर्यटन क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं भारी पड़ी है इसलिए समुची तीर्थन घाटी के लोगों को इस नदी के महत्व को समझते हुए इसको प्रदुषण मुक्त बनाए रखने और इसके संरक्षण एवं सम्वर्धन के लिए आगे आना होगा ताकि देश और दुनिया में इस नदी की एक अलग ही पहचान बनी रहे।
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*Featured image by Saurav Kundu (Unsplash)
nice sir. your pain towards your mother river is significant and we should protect this river . I travelled Himalayas, I lived in Lahaul & Spirit and then I realised the beauty of tirthan river.. it’s crystal clear water purifies us just by watching..