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एक्की की दास्तान: तानी जनजाति और कुत्तों से उनका रिश्ता

तानी लोककथाओं और परंपराओं में लोगों और उनके एक्की यानि कुत्तों का रिश्ता एक गहरी कहानी कहता है। सोलुंग त्योहार की पृष्ठभूमि में स्थापित यह कहानी, तानी समुदाय में कुत्तों की विशेष भूमिका को उजागर करती है, जो रक्षक से लेकर विश्वासपात्र पहरेदार तक का स्थान रखते हैं। यह कहानी परिवार की यादों और सांस्कृतिक दृष्टिकोण के जरिए, हमें दिखाती है कि कैसे कुत्तों का यह साथ उनकी आस्था, पहचान, और जीवन के हर पहलू में गहराई से बसा है, खासकर आज के बदलते समय में जब तानी समुदाय पर वैश्विक प्रभाव भी पड़ रहे हैं।

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“कोलो, मारसंग ओइंग- आपिम दोपोंग,” ओजो (दादी) ने पुकारा, उनकी आवाज़ ठंडी हवा में गूंज उठी, जैसे वो हमारे परिवार के एक्की, यानि हमारे परिवार के चार पैरों वाले सदस्य, रॉकी, को ढूंढने की कोशिश कर रही थीं। ओजो रॉकी को खाने के लिए बुला रही हैं। वो उसे प्यार से “मारसंग ओइंग” कहकर पुकारती हैं अर्थ “सब्जी का स्टू या तरकारी” है, लेकिन जिसे बच्चों को स्नेह से बुलाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

तानी  लोग एक्की यानि कुत्तों को पालतू जानवर नहीं मानते, बल्कि उन्हें परिवार का एक अहम सदस्य मानते हैं। हम अपने बच्चों को सबसे पहले यह सिखाते हैं कि कुत्तों को आयो/अबिंग  के नाम से संबोधित करें, जो सम्मान से केवल बड़ों के लिए उपयोग किए जाते हैं। रॉकी मेरे जन्म के 4 साल पहले पैदा हुआ था इसलिए मेरी दादी ने मुझे उसे बिबिंग  यानी बड़े भाई के नाम से संबोधित करना सिखाया। अगर घर के सदस्य कुत्ते से काफी बड़े हैं, तो उन्हें अपने बच्चे के रूप में संबोधित करना भी सामान्य है, या कुछ लोग उन्हें प्यार से आलंग (सूप), आकू आयक और मारसंग ओइंग जैसे उपनाम देते हैं।

एक्की, परिवार का कुत्ता। फोटो: नोइनाम

गीली मिट्टी की खुशबू शाम में फैल गई, और ऊंचे पेड़ धीरे-धीरे हिल रहे थे, उनकी शाखाएं हमारे पारंपरिक बांस के घर की छत को छू रही थीं। पूरी तरह से लकड़ी, बांस, और पत्तों से बना यह घर, लकड़ी के खंभों पर सौम्यता से खड़ा था, जो नमी से बचाने के लिए जमीन से ऊंचा था। फर्श को भूसे और घास जैसी प्रकृति की देन से मज़बूती से बुना गया था, और इसे जोड़ने के लिए न तो कोई कील का उपयोग हुआ था, न ही किसी धातु का। सूखी पत्तियों की ढलावदार छत हवा के गुजरने पर सरसराती थी, जो जंगल की गुनगुनाहट में मिल जाती थी।

आदि जनजाति का एक पारंपरिक घर। फोटो: नोइनाम

जैसे ही शाम ने पूर्वी सियांग के मेबो उपविभाग के छोटे से गाँव राने  की पहाड़ियों पर कदम रखा, घाटी में एक नया जीवन आ गया। नहूर  के पेड़ (काया असामिका प्रैन या अंग्रेजी में असमिया आयरन वुड) जंगल के पहरेदारों की तरह गर्व से खड़े, अपना रूप बदलने लगे, उनकी पत्तियां अम्बर, पीले और लाल रंगों में नजर आ रही थीं। ऐसा लग रहा था मानो सूर्य की अंतिम किरणों ने उन्हें आग में बदल दिया हो। मिट्टी और लकड़ी के धुए की हल्की खुशबू ठंडी शाम की हवा में मिल गई, जो बिखरे हुए चूल्हों से आ रही थी, क्योंकि गांव में परिवार सोलुंग, फसल के त्योहार, के लिए तैयारी कर रहे थे। गाँव के चारों ओर पहाड़ी ढलान पर खड़े घने जंगल मानो राने  के रहस्यों की रक्षा कर रहे थे। इन पहाड़ियों से बहते छोटी-छोटी धराए नीचे बह रही थीं और उनकी गरगराहट घाटी में हॉर्नबिल की पुकार के साथ मिल जाती। यह था राने, जीवंत और इंतजार में।

राने गांव। फोटो: नोइनाम

सोलुंगतानी  जाति के आदि  उपजाति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो फसल कटाई के समय मनाया जाता है। यह एक ऐसा उत्सव है, जो अनगिनत पीढ़ियों से चलता आ रहा है। लेकिन पहले, तानी  लोग कौन हैं? तानी  लोग एक साइनिटिक  जातीय समूह हैं जो अपने पूर्वजों को सिचुआन  नदी घाटी से जोड़ते हैं, और यह समुदाय अरुणाचल प्रदेश के पूर्वोत्तर राज्य में बहुसंख्यक है। अरुणाचल के अलावा, तानी की एक पर्याप्त जनसंख्या उच्च असम में भी है, और चीन के पूर्ववर्ती प्रांत सिकांग (तानी भाषा में सिसांग) में भी है।

तानी जातीयता का भौगोलिक प्रसार। फोटो: मिगोम

सोलुंग  के इस त्योहार में ये सुंदर पहाड़ियों में बसे हमारे लोग अपने पूर्वजों का सम्मान करने और नई फसल का स्वागत करने के लिए एकजुट होते हैं।पारंपरिक रूप से, सोलुंग  चंद्रमा के चक्र के अनुसार मनाया जाता था, इसलिए इसकी तारीख हर साल बदलती थीं। हालांकि, अब इसे अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा मानकीकृत किया गया है, ताकि यह सितंबर में आए, जो चावल की फसल के समय से मेल खाता है। जैसे-जैसे त्योहार नजदीक आता है, हमारा गाँव तैयारियों से हलचल में आ जाता है। महिलाएं अपने गाले (पारंपरिक वस्त्र) में जटिल पैटर्न बुनती हैं, पुरुष भव्य आग के लिए लकड़ी इकट्ठा करते हैं, और हम जैसे युवा, आने वाले उत्सव की खुशी में अपने एक्की  के साथ खेतों में दौड़ रहे होते हैं।

सोलुंग के दौरान गाले की बुनाई। फ़ोटो: नोइनाम
सोलुंग के दौरान पारंपरिक पोशाक में लड़की। फ़ोटो: नोइनाम

हमारे लिए यह सिर्फ एक उत्सव नहीं है — यह जीवंतता का एक विस्फोट है। पूरा गाँव गतिविधियों के केंद्र में बदल जाता है और एक ऐसा स्थान बन जाता है जहां परंपरा और आस्थाएं मिलती हो। इस समय, हवा में हंसी और गीत गूंजते हैं, क्योंकि परिवार भोजन और कहानियों को साझा करने के लिए इकट्ठा होते हैं। 

सोलुंग के दौरान एक सभा। फ़ोटो: नोइनाम
सोलुंग के दौरान खाया जाने वाला भोजन। फ़ोटो: नोइनाम

यह त्योहार जोश से धड़कता है, जब सभी एक साथ गाते हैं: “सोलुंग गिदी दीयेकुम असेंग अनाम इयेकुम, नोमे नगो कायेको, नोक्के डोलुंग अयेकू।” (सोलुंग  के दौरान, हम सभी खुश रहेंगे, लंबे समय के बाद मैं तुम्हें अपने गांव में देखूंगा।)

हाल के वर्षों में इस त्योहार ने नए रंग अपना लिए हैं। कभी शांत रहने वाले चर्च अब मोमबत्तियों की रोशनी से जगमगाते हैं, जहां लोग एकत्रित होकर अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं और भगवान के आशीर्वाद के लिए उन्हें धन्यवाद देते हैं। तानी  लोग भारत और चीन में फैले हुए हैं और ईसाई धर्म, डोनी पोलो और बौद्ध धर्म जैसे विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं। इसके बावजूद, हम सभ खून के रिश्ते से जुड़े हैं और अपनी विभिन्न उप-जनजातियों में एक समृद्ध विरासत साझा करते हैं।

डोनी पोलो धर्म का पालन करने वाले तानी। फ़ोटो: नोइनाम

फिर भी, पुरानी परंपराओं की एक याद बनी हुई है। कई तानी  लोग के ईसाई धर्म को अपनाने से पहले, सोलुंग  का मुख्य आकर्षण मिथुन (Bos frontalis) या ऐसो  की भव्य बलि हुआ करती थी। मिथुन एक बड़ा, पवित्र जानवर है, जिसे हिंदी में गायाल  कहा जाता है। तानी  और पड़ोसी जनजातियों में इसकी पूजा होती है, और मिथुन समाज में स्थिति, धन, और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसकी बलि, गाँव के बीच में दी जाती थी, जिससे पूर्वजों का सम्मान होता था और यह एक परिवार की प्रतिष्ठा को दर्शाता था। इसका मांस परिवारों में बांटा जाता था, जबकि इसका रक्त जंगल की आत्माओं को अर्पित किया जाता था। यह क्रिया केवल एक अनुष्ठान नहीं थी, बल्कि एक आशीर्वाद मानी जाती थी, जिसे मानवों और उनके पूर्वजों के बीच सामंजस्य लाने और बंधन को मजबूत करने के लिए माना जाता था। हालांकि यह परंपरा धूमिल हो रही है, फिर भी यह डोनी पोलो  विश्वास के अनुयायियों के बीच जीवित है, जहाँ मिथुन आज भी एक पवित्र जानवर माना जाता है, और इसकी बलि जंगल की आत्माओं के लिए दी जाती है।

मिथुन का मांस काटना। फ़ोटो: नोइनाम

जब मैं तानी लोगों की पहचान और संस्कृति की बात करता हूँ, तो एक्की यानी कुत्तों का जिक्र करना अनिवार्य हो जाता है। हमारे मौखिक इतिहास के अनुसार, जो हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया, कुत्ता एक मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता था, जो जीवन और मृत्यु के सफर में आत्मा की रक्षा करता था। आज भी, सोलुंग के दौरान, एक्की  को विशेष सम्मान दिया जाता है—अक्सर वह जुलूस का नेतृत्व करता है या मानव और आध्यात्मिक दुनिया के बीच एक सेतु का प्रतीक बनता है।

तो तानी  संस्कृति में कुत्ते ने यह महत्वपूर्ण भूमिका कैसे अपनाई? तानी  लोककथाओं के अनुसार, एक समय कई तानी  लोगों ने भीषण अकाल का सामना करना पड़ा। किने-नाने, जो जंगल की आत्माएं थीं, ने देखा कि लोग भूख से पीड़ित हैं और अपने लिए भोजन जुटाने में असमर्थ हो रहे हैं। अपनी दयालुता के चलते किने-नाने  ने तय किया कि वे लोगों की भूख मिटाने के लिए उन्हें एक अमूल्य उपहार देंगी: धान के बीज, जो जीवन के लिए एक मुख्य फसल है। इस अनमोल उपहार को मानवों तक पहुँचाने की जिम्मेदारी उन्होंने एक्की  यानि कुत्ते को सौंपी। कुत्ते ने निष्ठापूर्वक इस जिम्मेदारी को निभाया, धान के बीजों को मानवों तक पहुँचाकर उनकी जीविका और समृद्धि सुनिश्चित की।

कुत्ते के धान के बेचने पर बीज लाता हुआ। चित्रकार: मगोम

एक और तानी  लोककथा में सियांग नदी  के किनारे की उस यात्रा का जिक्र है, जो सिर्फ एक प्रवास नहीं बल्कि एक पुरानी मातृभूमि से पलायन थी। माना जाता है कि यह मातृभूमि आज के सिचुआन, चीन देश में कहीं हुआ करती थी। सदियों पहले, एक भयानक युद्ध में हार के बाद हमारे पूर्वज पहाड़ों और घने जंगलों के बीच से एक कठिन और खतरनाक यात्रा में पूरी तरह दिशाहीन और भयभीत होकर भागे थे। इसी संकट के क्षण में एक कुत्ता यानि एक्की  उनके मार्गदर्शक के रूप में उभरा, जो उन्हें नदी की अनियंत्रित रास्तों के किनारे से ले चला। एक्की  की दिखाई गई राह पर चलते हुए, तानी  लोगों के लिए सियांग  जीवन का सहारा और एक सुरक्षित ठिकाना बन गई, और इस नदी ने तानी लोगों को अरुणाचल प्रदेश के “डोनी-पोलो अमोंग” (ईश्वर के आशीर्वाद से पवित्र पर्वत) तक पहुँचा दिया। उस संघर्ष और निराशा की दौर से गुजरते हुए, एक्की  का संरक्षक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक का स्थान तानी  स्मृति में हमेशा के लिए गहराई से जुड़ गया—एक ऐसा रिश्ता जो समय, स्थान और यहाँ तक कि युद्ध से परे है।

सियांग नदी। फ़ोटो: नोइनाम

इतिहास में भी कुत्ते तानी  घरों के रक्षक रहे हैं, जो जंगली जानवरों या अजनबियों की उपस्थिति से परिवारों को सतर्क करते थे। हान और तिब्बती साम्राज्यों के साथ हुए बड़े संघर्षों के दौरान भी, कुत्तों ने युद्धभूमि में संदेशवाहक की भूमिका निभाई थी। माना जाता है कि ये युद्ध सदियों पहले, लिखित इतिहास से भी पहले हुए थे, और इनकी स्मृति तानी लोककथाओं में जीवित है। कुछ लोगों का मानना है कि ये संघर्ष शुरुआती शताब्दियों में हुए होंगे, जब हान राजवंश (206 ईसा पूर्व – 220 ईस्वी) और तिब्बती साम्राज्य इस क्षेत्र में अपना प्रभाव फैला रहे थे। इन युद्धों में कुत्तों की तेज़ इंद्रियों ने दुश्मन की गतिविधियों को पहले ही भांप लिया था, जहाँ इंसानी नज़रें नहीं पहुँच सकती थीं। चाहे घात की चेतावनी देना हो या योद्धाओं के बीच संदेश पहुँचाना, इस अशांति भरे दौर में तानी  जनजातियों के अस्तित्व के लिए एक्की  का योगदान अनमोल माना जाता है।

तानी गांव में एक पारंपरिक घर। फ़ोटो: नोइनाम

मेरी दादी कहती हैं, “इसी वजह से एक्की  रोज़मर्रा की जिंदगी में अनिवार्य बन गया।”

आज भी, उनकी घटती अहमियत के बावजूद, कुत्ते तानी  संस्कृति में अपनी अनूठी और प्रिय जगह बनाए हुए हैं। वे धार्मिक सीमाओं से परे, तानी  लोगों के दैनिक जीवन में गहराई से रचे-बसे हैं। कई तानी  घरों में यह परंपरा है कि दिन का पहला भोजन परिवार के एक्की  को दिया जाता है। चावल की सबसे ऊपरी परत, जिसे सबसे अच्छा हिस्सा माना जाता है, इन वफादार साथियों के लिए रखा जाता है। यह क्रिया केवल देखभाल का साधारण संकेत नहीं है; यह सम्मान का एक अनुष्ठान है, जो कुत्ते की सुरक्षा करने वाली भूमिका और घर के सदस्य के रूप में उनकी महत्ता को मान्यता देता है। 

तानी बच्चों के साथ एक एक्की पिल्ला। फ़ोटो: नोइनाम

जहां सोलुंग  त्यौहार तानी  लोगों की आदि  जाति द्वारा मनाया जाता है, वहीं यह उत्सव सभी तानी उप-समूहों तक फैलती है, चाहे वह मिस्सी  हो, न्यीशीआपातानीगालोतागिन  या चीन के लुआबा  समूह हो। इन जनजातियों के बीच, सोलुंगन्योकुम, और सी-डोनी  जैसे त्योहार, साथ ही क्रिसमस और नववर्ष, सभी फसल और परंपरा से गहरी जड़ें रखते हैं। सोलुंग  उत्सव आदि  लोगों का त्यौहार है, जबकि न्योकुम उत्सव न्यीशी  के लिए पवित्र है, और सी-डोनी  उत्सव तागिन  लोगों के लिए। इन त्योहारों का उद्देश्य न केवल फसल का सम्मान करना है, बल्कि तानी  लोगों और उनके वफादार एक्की  के बीच के स्थायी बंधन को भी सम्मानित करना है। 

सोलुंग उत्सव मनाने की तैयारी। फ़ोटो: नोइनाम

ईसाई तानी  लोग संत फ्रांसिस के पर्व, जो जानवरों के संरक्षक संत का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है, के दौरान कुत्तों को आशीर्वाद देते हैं। यही वजह है कि संत फ्रांसिस का यह पर्व तानी  समुदाय में अन्य राज्यों या दुनिया के किसी भी हिस्से के ईसाइयों से कहीं अधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। अरुणाचल का दौरा करते समय, अगर आप चर्च के आँगन में कुत्तों को घूमते हुए देखें, तो हैरान न हों। इसी तरह, हिंदू तानी  समुदाय में भी त्योहारों से पहले एक्की  को आशीर्वाद देने की परंपरा है।

तानी  जनजातियों की अनुकारात्मक परंपराओं, विशेषकर डोनी पोलो  के अनुयायियों के लिए, कुत्तों का एक खास महत्व है। उन्हें मानव और आध्यात्मिक दुनिया के बीच का मध्यस्थ माना जाता है और परंपराओं के रक्षक के रूप में देखा जाता है। लोककथाओं में कहा गया है कि ये एक्की  हमें बुरे ओयू से बचाते हैं। अनुकारात्मक तानी  विश्वास में भगवान की अवधारणा नहीं है; इसके बजाय, हम आत्माओं में विश्वास करते हैं, जो अच्छी या बुरी हो सकती हैं। इन आत्माओं को हम ओयू  कहते हैं।

डोनी पोलो को प्रसाद चढ़ाना। फ़ोटो: नोइनाम

हमारी कुत्तों के प्रति गहरी श्रद्धा के बावजूद, दिल्ली जैसे शेहेरो में रहने वाले लोग अक्सर वही पुरानी बात सुनाते हैं, अरुणाचल और पूर्वोत्तर के लोग तो कुत्ते खाते हैं।

यह एक ऐसा रूढ़िवादिता है जिसे तोड़ना मुश्किल प्रतीत होता है। हां, पूर्वोत्तर के कुछ समुदायों में कुत्ते का मांस वास्तव में आहार का हिस्सा होता है, जैसे कि अन्य समुदायों में बकरी, भेड़ या मिथुन। लेकिन पूर्वोत्तर बहुत बड़ा है, और इसकी संस्कृतियाँ इतनी समृद्ध और विविध हैं कि उन्हें एक ही धागे से परिभाषित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए, नागा लोगों को लें। उनके और कई समुदयों के आहार का चुनाव, परंपरा और जरूरतों पर निर्भर करता हैं। कुछ कुत्ते का मांस खा सकते हैं, जबकि अन्य अपने सांस्कृतिक या आध्यात्मिक विश्वासों के कारण गायों या सूअरों को खाने से परहेज कर सकते हैं। यह नैतिकता का सवाल नहीं है, बल्कि यह समझने का है कि प्रत्येक सांस्कृतिक या धार्मिक समूह अपने चारों ओर के जानवरों के साथ अपने अनूठे संबंध को लेकर चलता है।

तानी घर के बरामदे पर सो रहा एक एक्की। फ़ोटो: नोइनाम

मुझे याद है जब पहली बार मैंने दिल्ली में किसी को कहते सुना कि पूर्वोत्तर के लोग “कुत्ते खाते हैं” तो मुझे बहुत चोट पहुची। यह हमारी सांस्कृतिक परंपराओं में कुत्तों के महत्व को नकारने जैसा था। हमारे रिवाज़ के अनुसर एक्की  यानिकुत्तों को सबसे उच्च सम्मान दिया जाता है। वे वफादारी के प्रतीक होते हैं, हमारे पूर्वजों के साथ एक गेहरा संबंध रखते हैं, और आध्यात्मिक क्षेत्र में साथी होते हैं। हमारी संस्कृति में वफादारी केवल इस बात से नहीं होती कि एक कुत्ता आपके साथ रहता है; यह एक ऐसा बंधन है जो जीवन से परे जाता है। एक शिकारी की कहानी है, जिसका एक्की  जंगल में उसकी सुरक्षा और मार्गदर्शन कर रहा था, और शिकारी की मृत्यु के बाद भी उसने उसे नहीं छोड़ा। यही वजह है कि हमारे लिए वफादारी पवित्र मानी जाती है। हमारे कुत्ते सिर्फ पालतू जानवर नहीं हैं, बल्कि वे साथी से कहीं अधिक हैं; वे रक्षक हैं जो जीवन और मृत्यु दोनों में हमारे साथ खड़े रहते हैं। वे एक ऐसे प्रेम के बंधन से हमारे साथ जुड़े हैं जो विभिन्न सीमाओं को पार करता है। 

खेत में एक एक्की। फ़ोटो: नोइनाम

जैसे-जैसे आधुनिकता अरुणाचल प्रदेश के दूर-दराज के कोनों में प्रवेश कर रही है, और मोबाइल फोन उन गांवों में गूंज रहे हैं जो कभी केवल मौखिक परंपरा पर निर्भर थे, तानी  लोगों और कुत्ते के बीच का संबंध मज़बूती से बना हुआ है। हां, कुछ बदलाव हैं—कुछ परंपराएँ विकसित होती हैं, जबकि कुछ मिट जाती हैं—लेकिन एक्की  की भूमिका कायम है। हम अब गांव के चौक पर मिथुन का बलिदान नहीं देते, लेकिन हम आज भी कुत्ते के स्थान को अपने जीवन में आदर देते हैं। हम समझते हैं कि कुत्ते का सम्मान करना, हमारे विरासत का सम्मान करना है।

किपू कुत्ते के साथ अबोतानी की मूर्ति, ईटानगर कन्वेंशन हॉल। फोटो: कन्वेंशन हॉल अरुणाचल

हमारी संस्कृति और भाषा ही है जो हमें तानी  बनाती है। और हम तानी  कहलाने का क्या मतलब रखते हैं, अगर हम अबोतानी  के पहले दोस्त और साथी को सम्मान नहीं देते? अबोतानी  हमारे लिए केवल एक नाम नहीं है— वह हमारे पूर्वज हैं, जिनसे सभी तानी  जनजातियों की वंशावली जुड़ी हुई है। दंतकथा के अनुसार, जब अबोतानी  को उनके गाँव से निकाल दिया गया और वे जंगलों और नदियों में भटक रहे थे, तब उनका कुत्ता, जिसका नाम किपु था, हमेशा उनके साथ रहा। कहा जाता है कि कुत्ते की संगति के बिना, अबोतानी  जीवित नहीं रह पाते और अपना ज्ञान अगली पीढ़ियों को नहीं सौंप पाते। इसलिए, जब आप इटानगर सम्मेलन हॉल जाएंगे, तो आपको अबोतानी  की प्रतिमा उनके परिवार के साथ गर्व से खड़ी दिखेंगी, जिसमें किपु  भी शामिल है। यह केवल विरासत का प्रदर्शन नहीं है, यह हमारे अस्तित्व के आधार को श्रद्धांजलि है। जब तक हम एक्की  को संजोते हैं, तब तक हम अपने अस्तित्व की पहचान को जीवित रखते हैं, एक ऐसा समुदाय जो अपने पूर्वजों को सदा याद करता है, चाहे चारों ओर की दुनिया कितनी ही क्यों न बदलती रहे।

खैर, मेरी तरफ से अभी इतना ही क्योंकि मुझे रॉकी का ध्यान रखना है। वह इस सोलुंग  में बहुत एक आदिन (सुअर) का मीट खाने से थोड़ा मोटा हो गया है।

Meet the storyteller

Mínkēng (Luke Rimmo Lego)
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Mínkēng Lego is a linguist and biomedical engineer with a keen interest in neuroscience, public health, and CRISPR technology. Co-founder of the North-eastern Centre for High School Research (NECHR), the Tani Language Foundation, and Shui Aseng, he works to support students, preserve indigenous languages, and improve healthcare. He aims to make healthcare data more accessible and help bring research opportunities to high schoolers in north-eastern India. Outside work, Mínkēng is an avid leaf collector with over 250 species in his herbarium. He enjoys mountain biking, badminton, reading, and passionately cheering for Tottenham Hotspur.

 

मिन्केंग लेगो एक भाषाविज्ञनी और जैव चिकित्सा इंजीनियर हैं, जिसे तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसाइंस), सार्वजनिक स्वास्थ्य और क्रिस्पर तकनीकी मेंगहरी रुचि है। उत्तर-पूर्वी हाई स्कूल रिसर्च सेंटर (NECHR), तानी भाषा फाउंडेशन, और शुई असेंग के सह-संस्थापक के रूप में, वह छात्रों कासमर्थन करने, स्वदेशी भाषाओं को संरक्षित करने और स्वास्थ्य सेवा में सुधार करने के लिए काम कर रहे हैं। उसका लक्ष्य उत्तर-पूर्वी भारत के हाईस्कूल के छात्रों के लिए अनुसंधान के अवसर लाना और स्वास्थ्य डेटा को अधिक सुलभ बनाना है। काम के अलावा, मिन्केंग एक उत्साही पत्तेइकट्ठा करने वाले हैं, जिसके हर्बेरियम (सूखी वनस्पतियों के संग्राह) में 250 से अधिक प्रजातियाँ हैं। उसे माउंटेन बाइकिंग, बैडमिंटन, पढ़ाईकरना और टॉटनहैम हॉटस्पर के लिए प्रोत्साहन करना पसंद है।

 

Takar Mili
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Takar Mili is a first-year Bachelor of Arts student in the History department at DHSK Kanoi College, Dibrugarh. Deeply committed to the preservation and promotion of Tani culture and heritage, Takar has been actively involved in various linguistic organizations, including the Mising Agom Kebang (MAK) of the Charaideo region. Recently, Takar joined the Tani Language Foundation, where he works as a linguistic and cultural archivist. In addition, he serves as a speaker for the Wesean Tani Students' Federation under the Wesean Student Federation (WSF)

ताकार मिली डिब्रूगढ़ के डीएचएसके (DHSK) कानोई कॉलेज में इतिहास के प्रथम वर्ष के छात्र हैं। वे तानी संस्कृति और धरोहर के संरक्षण केलिए समर्पित हैं और चराइदेव क्षेत्र के मिसिंग अगोम केबांग (एम.ए.के) सहित कई भाषाई संगठनों में सक्रिय हैं। हाल ही में, उन्होंने तानी लैंग्वेजफाउंडेशन में एक भाषाई और सांस्कृतिक अभिलेखक के रूप में काम शुरू किया है। इसके अलावा, वे वेसेन तानी छात्र महासंघ (डब्ल्यूएसएफ) के वक्ता भी हैं।

Tani Language Foundation
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The Tani Language Foundation (TLF) is a student-founded not-for-profit entity dedicated to reviving the ancient Tanilanguage and its rich cultural heritage. Rooted in regions of India and China, TLF unites Tani dialects to preserve ancestral traditions and linguistic diversity. Through open-source archives, language resources, and a commitment to simplifying the Tani script, TLF empowers communities to reclaim their identity. Driven by love for their resilient ethnicity, TLF strives to safeguard the Tani people's voice and legacy, ensuring it thrives on for future generations.

तानी  भाषा फाउंडेशन (TLF) एक छात्र-स्थापित गैर-लाभकारी संस्था है, जो प्राचीन तानी  भाषा और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने के लिए समर्पित है। भारत और चीन के क्षेत्रों में स्थापित, TLF तानी  बोलियों को एकजुट करता है ताकि पूर्वजों की परंपराओं और भाषाई विविधता को संरक्षित किया जा सके। ओपन-सोर्स पुरालेख, भाषा संसाधनों, और तानी  लिपि को सरल बनाने की प्रतिबद्धता के माध्यम से, TLF समुदायों को उनकी पहचान को पुनः प्राप्त करने में सशक्त बनाता है। अपनी मजबूत जातीयता के प्रति प्रेम से प्रेरित, TLF तानी  लोगों की आवाज़ और विरासत की रक्षा करने के लिए प्रयासरत है, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए जीवित रहे।

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